SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीअङ्गसूत्रं (२) ३३/१/४-११/१०२१ पज्जत्तगा जहा अणंतरोववन्नगा ८ ॥ परंपरपज्जत्तगा जहा परंपरोववन्नगा ९० । चरिमावि जहा परंपरोववन्नगा तहेव १० ।। एवं अचरिमावि ११ ।। एवं एए एक्कारस उद्देसगा । सेवं भंते ! २ जाव विहरइ ॥ ४७८ -: शतकं - ३३ द्वितीयशतकं : मू. (१०२२) कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्साएगिंदिया प० तं०- पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया । कण्हलेस्सा णं भंते ! पुढविकाइया कइविहा प० ?, गोयमा ! दुविहा पं० तं० - सुहुमपुढविका - इया य बादरपुढविकाइया य, कण्हलेस्सा णं भंते! सुहुमपुढविकाइया कइविहा प० ?, गोयमा ! एवं एएणं अभिलावेणं चउक्कभेदो जहेब ओहिउद्देसए जाव वणस्सइकाइयत्ति, कण्हलेस्सअप - जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ प० ?, एवं चेव एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव पन्त्रत्ताओ तहेव बंधंति तहेव वेदेति । सेवं भंते ! २त्ति । कइविहा णं भंते ! अनंतरोववन्नगकण्हलेस्सएगिंदिया पन्नत्ता ?, गोयमा ! पंचविहा अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिंदिया एवं एएणं अभिलावेणं तहेव दुयओ भेदो जाव वणस्सइकाइयत्ति, अनंतरोववन्नगकण्हलेस्ससुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ प० ?, एएणं अभिलावेणं जहा ओहिओ अनंतरोववन्नगाणं उद्देसओ तहेव जाव वेदेति । सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति ॥ कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्नगा कण्हलेस्सा एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्नगा कण्ह० एगिंदिया पन्नत्ता, तंजहा - पुढविकाइया एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो जाव वणस्सइकाइयत्ति । परंपरोववन्नगकण्हलेस्सअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कइकम्मप्पगडीओ प० ?, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ परंपरोववन्नगउद्देसओ तहेव जाव वेदेति, एवं एएणं अभिलावेणं चहेव ओहिएगिंदियसए एक्कारस उद्देसगा भणिया तहेव कण्हलेस्ससतेवि भाणियव्वा जा अचरिमचरिमकण्हलेस्साएगिंदिया । -: शतकं - ३३ - तृतीयंशतकं: : मू. (१०२३) जहा कण्हलेस्सेहिं भणियं एवं नीललेस्सेहिवि सयं भाणियव्वं । सेवं भंते! २ त्ति ।। ततियं एगिंदियसयं सम्मत्तं ॥ -: शतकं - ३३ - चतुर्थशतकं: मू. (१०२४) एवं काउलेस्सेहिवि सयं भाणियव्वं नवरं काउलेस्सेति अभिलावो भाणियव्वो ॥ -: शतकं - ३३ - पंचमं शतकं: मू. (१०२५) कइविहा णं भंते ! भवसिद्धिया एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धिया एगिंदिया प०, तं० - पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003310
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 06 Bhagvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages532
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy