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________________ शतकं-८, वर्गः-, उद्देशकः-१ ३५१ एवं एएणं अभिलावेणंपरिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य, उरपरिसप्पादुविहा पन्नत्ता, तंजहा-संमुच्छायगब्भवतियाय, एवंभुयपरिसप्पावि, एवंखहयरावि मणुस्सपंचिंदियपयोगपुच्छा, गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा संमुच्छिममणुस्स० गब्भवक्कंतियमणुस्स०। देवपंचिंदियपयोगपुच्छा, गोयमा! चउब्विहा पन्नत्ता, तंजहाभवणवासिदेवपंचिंदियपयोग० एवंजाव वेमानिया। भवणवासिदेवपंचिंदियपुच्छा, गोयमा ! दसविहा पन्नत्ता, तंजहा-असुरकुमारा जाव थनियकुमारा। एवं एएणं अभिलावणं अट्ठविहा वाणमंतरा पिसाया जाव गंधव्वा । जोइसियापंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-चंदविमाणजोतिसियजावताराविमाणजोतिसियदेव० वेमानिया दविहा पन्नत्ता, तंजहा-कप्पोववन्न० कप्पातीतगवेमानिया०, कप्पोवगा दुवालसविहा पन्नत्ता, तंजहा-सोहम्मकप्पोवग० जाव अच्चुयकप्पोवगवेमानिया। कप्पातीत०, गो०! दुविहा पन्नत्ता, तंजहागेवेजकप्पातीतवे० अनुत्तरोववाइयकप्पातीतवे०, गेवेज्जकप्पातीतगा नवविहा पन्नत्ता, तंजहा-हेट्ठिम २ गेवेज्जगकप्पातीतग० जाव उवरिम २ गेविजगकप्पातीय० । अनुत्तरोववाइयप्पातीतगवेमानियदेवपिंचिंदयपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा प०, गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-विजयअनुत्तरोववाइय० जाव परिण० जाव सव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयदेवपंचिंदिय जाव परिणया। सुहुमपुढविकाइयएगिदियपयोगपरिणयाणंभंते! पोग्गला कइविहा पन्नत्ता?, गोयमा दुविहा पन्नत्ता, पज्जत्तगसुहमपुढविकाइय जाव परिणयायअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयव परिणया य, बादरपुढविकाइयएगिदिय० जाव वणस्सइकाइया, एक्केक्का दुविहा पोग्गला-सुहुमा य बादरा य पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा बेंदियपयोगपरिणयाणपुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा पजत्तबेंदियपयोगपरिणया य अपज्जत्तग जाव परिणया य, एवं तेइंदियावि एवं चउरिदियावि। रयणप्पभापुढविनेरइय० पुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पज्जत्तगरयणप्पभापुढवि जाव परिणया य अपज्जत्तगजावपरिणया य, एवंजाव अहेसत्तमा। संमुच्छिमजलयरतिरिक्खपुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तग० अपज्जत्तग० एवं गब्भवक्कंतियावि, संमुच्छिमचउप्पयथलयरा एवं चेव गब्भवक्कंतिया य, एवं जाव संमुच्छिमखहयरगब्भवतिया य एकेके पज्जत्तगा य अपजत्तगाय भानियव्वा । संमुच्छिममणुस्सपंचिंदियपुच्छा, गोयमा! एगविहापन्नत्ता, अपजत्तगाचेव।गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदियपुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पज्जत्तगगब्भवक्कंतियाविअपजत्तगगब्भवक्कंतियावि। ___ असुरकुमारभवणवासिदेवाणंपुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पञ्जत्तगअसुरकुमार० अपजत्तगअसुर०, एवं जावथनियकुमारापज्जत्तगा अपजत्तगाय, एवंएएणंअभलावेणंदुयएणं भेदेणं पिसाया य जाव गंधव्वा, चंदा जाव ताराविमाणा०, सोहम्मकप्पोवगा जाव अच्चुओ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003309
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 05 Bhagvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages564
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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