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________________ १०८ स्तुति तरंगिणी पति - प्रभावा, तथा भाग्य - सौभाग्य-सौख्य- प्रगल्भ - स्वभावैक-भूमिः वृता देवी पद्मावती सदाऽऽशालतावाटिका, विश्वदेवी ॥४॥ (१८४९ चै. सु. ७ लिखिता पं. अमृतकुशलेन धौर्यपूरनगरे शान्ति - जिनप्रासादे ( अमर वि. - डभोई) (१५) सरसिज - समसुन्दरानन्द - सन्दोह - शम्याद - नामंद - सम्यक् मदे दिदिरामोदनंदि - प्रदास्यंदि - वाणी - मधु - भ्राजिरम्याननं, फणधर - धरणाधिराज - प्रजापाल - लेखाधिपेभ्यो नमन्मौलिसन्मौलिमाला लसरसलीला लिमाला - सुमस्रक् - सुगन्धि क्रमाम्भोरुहम् | नवनिधि - नवसम्पदादान-सन्धान - रङ्गत्फणा - शालि शालासलीलोल्लस नीलवर्णा- सवर्ण - प्रभुतोरु - वर्णाङ्ग - कल्पद्रुमं, सुमिलित- नरनारी - सम्भारसङ्गीत- गीत - प्रभुताति-सङ्गीतवादित्र- संशोभितोत्तङ्ग-सद्रङ्ग - रङ्ग - गृहे पार्श्वनाथं स्तुवे ॥ १ ॥ कुलगिरिवर- कुटसम्यकू - कुरुध्यन्तरोदारतारा-सुरादि गृहोदा वैमानिकाने कनाना - विमानान्तर - स्फीत - चैत्याश्रितान्, दधिमुख - रतिकार- भारांजनाद्रि- प्रकार- प्रभासि - प्रभा - भारत नन्दीश्वर - द्वीपसत्तार - तारोच्च वैताढ्य - कूटे स्थितानादरात् । विविधरूचक- कुण्डल - द्वीप मेरुद्वीपोद्यद्रह - श्रृंग - वक्षस्कृदष्टा - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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