________________ 67 सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) अलम्भि। लभ+लुङ् / अट्+लभ+च्लि+ल। अ+लभ+चिण्+त। अ+ल नुम् भ+इ+त। अ+लम्भ+इ+० / अ+ल - भू+इ+० / अ+लम्भ+इ। अलम्भि। यहां 'डुलभष् प्राप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से 'लुङ्' (3 / 2 / 110) से कर्मवाच्य अर्थ में 'लुङ्' प्रत्यय है। चिण भावकर्मणोः' (3 / 1 / 66) से 'च्लि' के स्थान में चिण्' आदेश होता है। इस सूत्र से चिण्' प्रत्यय परे होने पर 'लभ्' धातु से नुम्’ आगम होता है। नकार को अनुस्वार और अनुस्वार को परसवर्ण मकार पूर्ववत् है। 'चिणो लुक् (6 / 4 / 104) से त' प्रत्यय का लुक हो जाता है। विकल्प-पक्ष में नम-आगम नहीं है-अलाभि / यहां 'अत उपधाया:' (7 / 2 / 116) से अङ्ग को उपधावृद्धि होती है। (2) लम्भंलम्भम् / यहां लभ्' धातु से 'आभीक्ष्ण्ये णमुल च' (3 / 4 / 22) से 'णमुल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से णमुल्' प्रत्यय परे होने पर लभ्' धातु को नुम्' आगम होता है। नकार को अनुस्वार और अनुस्वार को परसवर्ण मकार पूर्ववत् है। वा०'आभीक्ष्ण्ये द्वे भवतः' (8 / 1 / 12) से द्वित्व होता है। विकल्प-पक्ष में नुम्-आगम नहीं है-लाभलाभम् / यहां पूर्ववत् उपधावृद्धि होती है। नुम्-आगमः (25) उगिदचा सर्वनामस्थानेऽधातोः / 70 / प०वि०-उगिद्-अचाम् 6 / 3 सर्वनामस्थाने 7 / 1 अधातो: 6 / 1 / स०-उग् इद् येषां ते उगित:, उगितश्च अच्च ते उगिदच:, तेषाम्-उगिदचाम् (बहुव्रीहिगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। न धातुरिति अधातुः, तस्य-अधातो: (नञ्तत्पुरुष:)। अनु०-अङ्गस्य, नुम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-अधातोरुगिदचाम् अङ्गानां सर्वनामस्थाने नुम् / अर्थ:-धातुवर्जितानामुगिताम् अञ्चतेश्चाङ्गस्य सर्वनामस्थाने परतो नुमागमो भवति। उदा०-(उगित्) भवतु-भवान्, भवन्तौ, भवन्त: / ईयसुन्-श्रेयान्, श्रेयांसौ, श्रेयांस: / शतृ-पचन्, पचन्तौ, पचन्तः। (अञ्चति:) प्राङ्, प्राञ्चौ, प्राञ्चः। __ आर्यभाषा: अर्थ-(अधातो:) धातु से भिन्न (उगिदचाम्) उक् जिनका इत् है उनको तथा अञ्चति इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (सर्वनामस्थाने) सर्वनामस्थान-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (नुम्) नुम् आगम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org