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अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
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उदा० - लब्धा । प्राप्त करनेवाला । लब्धुम् । प्राप्त करने के लिये । लब्धव्यम् । प्राप्त करना चाहिये । दोग्धा । दुहनेवाला । दोग्धुम् । दुहने के लिये । दोग्धव्यम् । दुहना चाहिये। बोद्धा । जाननेवाला । बोद्धुम् । जानने के लिये। बोद्धव्यम् । जानना चाहिये ।
सिद्धि - (१) लब्धा । यहां 'डुलभष् प्राप्तौं' (भ्वा०आ०) धातु से 'वुल्तृचौं (३ । १ । १३३) से 'तृच्' प्रत्यय है । 'झषस्तथोर्धोऽधः' (८ 1२1४०) से 'तृच्' के तकार को धकार आदेश होकर इस सूत्र से 'लभ' के झल् भकार को ज़श् बकार आदेश होता है। तुमुन् प्रत्यय में- लब्धुम् । तव्यत् प्रत्यय में- लब्धव्यम् ।
(२) दोग्धा । यहां 'दुह प्रपूरणे ( अदा०प०) धातु से पूर्ववत् 'तृच्' प्रत्यय है। 'दादेर्धातोर्घः' (८।२ । ३२ ) से 'दुह' धातु के हकार को घकार और पूर्ववत् तकार को धकार आदेश होकर इस सूत्र से झल् घकार को जश् गकार आदेश होता है। तुमुन् प्रत्यय में- दोग्धुम् । तव्यत् प्रत्यय में- दोग्धव्यम् ।
(३) बोद्धा | यहां 'बुध अवगमने (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'तृच्' प्रत्यय है। पूर्ववत् तकार को धकार आदेश होकर इस सूत्र से झल् धकार को जश् दकार आदेश होता है। तुमुन् प्रत्यय में- बोद्धुम् तव्यत् प्रत्यय में- बोद्धव्यम् ।
विशेषः झ, भ, घ, ढ, धं, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स, ह ये २४ वर्ण झल् हैं। इनके स्थान में झश् अर्थात् झ, भ, घ, द, ध वर्ण परे रहने पर जश् अर्थात् ज, ब, ग, ड, द वर्ण आदेश होते हैं। यहां झल् वर्णों के स्थान में उनके स्थानकृत आन्तर्य (सादृश्य) से जश् वर्ण आदेश किये जाते हैं। जैसे कि 'लब्धा ' पद में भकार के स्थान में जश् बकार किया गया है । भकार और बकार दोनों का स्थान 'उपूपध्मानीया ओष्ठ्याः' (पा०शि० १।१४ ) से ओष्ठ है। ऐसे ही सर्वत्र समझें ।
चर्+जश्
(१५) अभ्यासे चर्च । ५३ ।
प०वि० - अभ्यासे ७ । १ चर् १ । १ च अव्ययपदम् । अनु०-संहितायाम्, झलाम्, जश् इति चानुवर्तते । अन्वयः - संहितायाम् अभ्यासे झलां चर् जश् च । अर्थ:-संहितायां विषयेऽभ्यासे वर्तमानानां झलां स्थाने चर जश् च आदेशो भवति ।
उदा०-(चर्) स चिखनिषति । स चिच्छित्सति । स टिठक्कुरयिषति । स तिष्ठासति। स पिफलिषति । स बुभूषति । स जिघत्सते । स डुढौकिषते ।
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