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________________ सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः ५७ नुम्-आगमः (१४) शे मुचादीनाम् ।५६। प०वि०-शे ७।१ मुचादीनाम् ६।३। स०-मुच् आदिर्येषां ते मुचादय:, तेषाम्-मुचादीनाम्। अनु०-अगस्य, नुम् इति चानुवर्तते। अन्वयः-मुचादीनाम् अङ्गानां शे नुम्। अर्थ:-मुचादीनाम् अङ्गानां शे परतो मुमागमो भवति। उदा०-मुच्लु मोचने-स मुञ्चति । लुप्लु छेदने-स लुम्पति । विद्लु लाभे-स विन्दति । लिप उपदेहे-स लिम्पति । षिच क्षरणे-स सिञ्चति । कृती छेदने-स कृन्तति । खिद परिघातने-स खिन्दति। पिश अवयवेस पिंशति । एते मुचादयो धातवस्तुदादिगणे पठ्यन्ते । आर्यभाषा: अर्थ-(मुचादीनाम्) मुच्-आदि (अङ्गानाम्) अङ्गो को (शे) श-प्रत्यय परे होने पर (नुम्) नुम् आगम होता है। उदा०-स मुञ्चति । वह छोड़ता है। स लुम्पति । वह काटता है। स विन्दति । वह प्राप्त करता है। स लिम्पति। वह लीपता है। स सिञ्चति। वह सींचता है। स कृन्तति । वह काटता है। स खिन्दति । वह दुःख देता है (सताता है)। स पिंशति । वह टुकड़े-टुकड़े करता है। ये मुचादि धातु पाणिनीय धातुपाठ के तुदादिगण में पठित हैं। सिद्धि-मुञ्चति । मुच्+लट् । मुच्+ल। मुच्+तिप् । मुच्+श+ति । मु नुम् च्+अ+ति। मुन् च+अ+ति। मु च्+अ+ति। मुञ्च+अ+ति । मुञ्चति। यहां 'मृच्छृ मोचने (तु०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से 'लट्' प्रत्यय है। तुदादिभ्यः श:' (३।१।७७) से 'श' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'श' प्रत्यय के परे होने पर मुच्’ को नुम्' आगम होता है। यह आगम मित् होने से मिदचोऽन्त्यात् परः' (१।१।४७) से 'मुच्' धातु के अन्तिम अच् से परे किया जाता है। 'नश्चापदान्तस्य झलि' (८।३।२४) से नकार को अनुस्वार और 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः' (८।४।५८) से अनुस्वार को परसवर्ण अकार होता है। ऐसे ही-लुम्पति आदि। नुम्-आगम: (१५) मस्जिनशोझलि।६०। प०वि०-मस्जि-नशो: ६।२ झलि ७।१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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