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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् णकारादेशविकल्प:
(१८) शेषे विभाषाऽकखादावषान्त उपदेशे।१८।
प०वि०-शेषे ७१ विभाषा ११ अकखादौ ७१ अषान्ते ७।१ उपदेशे ७१।
स०-कश्च खश्च तौ कखौ, कखावादी यस्य कखादि:, न कखादिरिति अकखादि:, तस्मिन्-अकखादौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वबहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)। षोऽन्ते यस्य स षान्त:, न षान्त इति अषान्त:, तस्मिन्-अषान्ते (बहुव्रीहिगर्भितनञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, उपसर्गात्, नेरिति चानुवर्तते।
अन्वय:-संहितायाम् उपसर्गस्य रषाभ्यां नेर्न उपदेशेऽकखादावषन्ते शेषे विभाषा णः।
___अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफषकाराभ्यां परस्य ने कारस्य स्थाने, उपदेशे ककारखकारादिवर्जिते षकारान्तवर्जिते च शेषे धातौ परतो विकल्पेन णकारादेशो भवति।
उदा०- (पच्) प्र-प्रणिपचति, प्रनिपचति । (भिद्) प्रणिभिनत्ति, प्रनिभिनत्ति।
__ अकखादाविति किम् ? प्रनिकरोति, प्रनिखनति। अषान्ते इति किम् ? प्रनिपिनष्टि।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (उपसर्गस्य) उपसर्ग के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (न:) नि के (न:) नकार के स्थान में, (उपदेश) पाणिनि मुनि के धातुपाठ रूप उपदेश में (अकखादौ) ककारादि और खकारादि धातु से भी भिन्न धातु परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (ण:) णकार आदेश होता है।
उदा०-(पच) प्र-प्रणिपचति, प्रनिपचति । वह अति निकृष्ट पकाता है। (भिद्) प्रणिभिनत्ति, प्रनिभिनत्ति । वह अति निकृष्ट फाड़ता है।
सिद्धि-प्रणिपचति । यहां प्र और नि-उपसर्गपूर्वक 'डुपचष् पाके' (भ्वा०उ०) धातु से लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। इस सूत्र से 'प्र' उपसर्ग के रेफ से परवर्ती नि' के नकार को, ककारादि, खकारादि और षकारान्त धातु से भिन्न 'पच्' धातु परे होने पर णकार आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में णकार आदेश नहीं है-प्रनिपचति । भिदिर् विदारणे (रुधा०प०) धातु से-प्रणिभिनत्ति, प्रनिभिनत्ति।
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