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अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
७१५ सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती णोपदेश नी' धातु के नकार को समास में णकार आदेश होता है। यहां कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है।-प्रगतो नायक इति प्रणायकः । परि-उपसर्ग में-परिणायकः । णकारादेशः
(१५) हिनुमीना।१५। प०वि०-हिनुमीना ११ (षष्ठ्यर्थे)। स०-हिनुश्च मीनाश्च एतयो: समाहार:-हिनुमीना (समाहारद्वन्द्वः) । अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, णः, उपसर्गादिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां उपसर्गस्य रषाभ्यां हिनुमीना नो णः ।
अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफषकाराभ्यां परयोर्हिनु, मीना इत्येतयोर्नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति।।
उदा०-(हिनु) प्र-प्रहिणोति, प्रहिणुत:। (मीना) प्र-प्रमीणाति, प्रमीणीत:।
आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (उपसर्गस्य) उपसर्ग के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (हिनुमीना) हिनु और मीना शब्दों के (न:) नकार के स्थान में (ण:) णकार आदेश होता है।
उदा०-(हिनु) प्र-प्रहिणोति। वह भेजता है। प्रहिणुत: । वे दोनों भेजते हैं। (मीना) प्र-प्रमीणाति । वह हिंसा करता है। प्रमीणीत: । वे दोनों हिंसा करते हैं।
सिद्धि-(१) प्रहिणोति। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक हि गतौ' (स्वा०प०) धातु से लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। स्वादिभ्यः श्नः' (३।११७३) से 'इनु' विकरण-प्रत्यय है। प्र+हि+नु+ति, इस स्थिति में इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती हिनु' के नकार को णकार आदेश होता है। तस्-प्रत्यय में-प्रहिणुत:।
(२) प्रमीणाति। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक 'मीञ् हिंसायाम् (क्रयाउ०) धातु से लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। क्रयादिभ्यः श्ना' (३११८१) से 'श्ना' विकरण-प्रत्यय है। प्र+मी+ना+ति, इस स्थिति में इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती 'मीना' के नकार को णकार आदेश होता है। तस्-प्रत्यय में-प्रमीणीतः । ई हल्यघो:' (६।४।११३) से ईकार आदेश है। णकारादेशः
(१६) आनि लोट् ।१६। प०वि०-आनि १।१ (षष्ठ्यर्थे), लोट् १।१ (षष्ठ्यर्थे)।
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