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________________ ७१४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् णकारादेशः (१४) उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य।१४। प०वि०-उपसर्गात् ५।१ असमासे ७।१ अपि अव्ययपदम्, णोपदेशस्य ६।१। स०-न समास इति असमास:, तस्मिन्-असमासे (नञ्तत्पुरुषः)। णकार उपदेशे यस्य स णोपदेशः, तस्य-णोपदेशस्य (बहुव्रीहिः)। अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, ण इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायाम् उपसर्गस्य रषाभ्यां णोपदेशस्य नोऽसमासेऽपि णः । अर्थ:-संहितायां विषये उपसर्गस्य रेफषकाराभ्यां परस्य णोपदेशस्य धातोर्नकारस्य स्थानेऽसमासे समासेऽपि च णकारादेशो भवति। उदा०-(प्र) असमासे-स प्रणमति। स परिणमति। समासेप्रणायकः, परिणायकः। आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (उपसर्गस्य) उपसर्ग के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (णोपदेशस्य) उपदेश में णकार वाले धातु के (न:) नकार के स्थान में (असमासेऽपि) असमास में और समास में भी (ण:) णकार आदेश होता है। उदा०-(प्र) असमास में-स प्रणमति। वह प्रणाम (नमस्ते) करता है। स परिणमति। वह बदलता है। समास में-प्रणायकः। प्रणेता, प्रथमकर्ता। परिणायकः । विवाह करनेवाला। सिद्धि-(१) प्रणमति। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक ‘णम प्रहत्वे शब्दे च' (भ्वा०प०) धातु से लट्' प्रत्यय है। लकार के स्थान में तिप्' आदेश और 'शप्' विकरण-प्रत्यय है। णम्' धातु उपदेश में णकारवान् है। ‘णो नः' (६।१।६४) से इसके णकार को नकार आदेश होता है। इस सूत्र से 'प्र' उपसर्ग के रेफ से परवर्ती णोपदेश नम्' धातु के नकार को असमास में णकार आदेश होता है। यहां प्र' और नमति का क्रियायोग है, समास नहीं है अत: उपसर्गाः क्रियायोगे (१।४।५९) से 'प्र' की उपसर्ग संज्ञा है। परि-उपसर्ग में-परिणमति। (२) प्रणायक: । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक णी प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से ण्वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से 'वुल्' प्रत्यय है। 'युवोरनाकौं' (७।१।१) से वु' को अक' आदेश है। 'णीज्' धातु उपदेश में णकारवान् है। इसके णकार को पूर्ववत् नकार आदेश होता है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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