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अष्टमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
७०६ सुरा-पूर्वपद में-सुरापाणा: । सौवीर पूर्वपद में-सौवीरपाणा:। कषाय-पूर्वपद में-कषायपाणा:।
विशेष: उशीनर-पंजाब देश का एक जनपद । बाह्लीक-कंबोज के पश्चिम, वंक्षु के दक्षिण और हिन्दूकुश के उत्तर-पश्चिम का प्रदेश। गन्धार-काश्कर (कुनड़) नदी से तक्षशिला तक फैला हुआ प्रदेश। णकारादेशविकल्प:
(१०) वा भावकरणयोः ।१०। प०वि०-वा अव्ययपदम्, भाव-करणयोः ७।२।
स०-भावश्च करणं च ते भावकरणे, तयो:-भावकरणयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, ण:, पूर्वपदात्, पानमिति चानुवर्तते । अन्वय:-संहितायां पूर्वपदस्य रषाभ्यां भावकरणयो: पानं नो वा णः ।
अर्थ:-संहितायां विषये पूर्वपदस्य रेफषकाराभ्यां परस्य भावे करणे चार्थे वर्तमानस्य पानमित्येतस्य नकारस्य स्थाने विकल्पेन णकारादेशो भवति।
उदा०-(भाव:) क्षीरपाणम्, क्षीरपानं वर्तते । कषायपाणम्, कषायपानं वर्तते। सुरापाणम्, सुरापानं वर्तते। (करणम्) क्षीरपाण: कंस:, क्षीरपान: कंस:।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पूर्वपदस्य) पूर्वपद के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (भावकरणयोः) भाव और करण अर्थ में विद्यमान (पानम्) पान शब्द के (न:) नकार के स्थान में (वा) विकल्प से (ण:) णकार आदेश होता है।
उदा०-(भाव) क्षीरपाणम्, क्षीरपानं वर्तते । दुग्धपान चल रहा है। कषायपाणम्, कषायपानं वर्तते । कसैलापान चल रहा है। सुरापाणम्, सुरापानं वर्तते। मदिरापान चल रहा है। (करण) क्षीरपाण: कंस:, क्षीरपान: कंस: । दूध पीने का गिलास।
सिद्धि-(१) क्षीरपाणम् । यहां क्षीर और पान शब्दों का षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'पान' शब्द में 'पा पाने (भ्वा०प०) धातु से 'ल्युट च' (३।३।११५) से भाव-अर्थ में ल्युट्' प्रत्यय है। युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'यु' को 'अन' आदेश है। इस सूत्र से क्षीर पूर्वपद के रेफ से परवर्ती तथा अट् और पवर्गव्यवायी (अ-प्-आ) 'पान' के नकार को
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