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________________ ७०० ___ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-(१) आस्तीर्णम् । यहां आङ्-उपसर्गपूर्वक स्तृञ् आच्छादने (क्रयाउ०) धातु से नपुंसके भावे क्तः' (३।३।११४) स भाव अर्थ में क्त' प्रत्यय है। ऋत इद्धातो:' (७।१।१००) से ऋकार' को ईकार आदेश और इसे उरण रपरः' (१।१।५१) से रपरत्व तथा हलि च' (८।२।७७) से दीर्घ होता है। ‘रदाभ्यां निष्ठातो न: पूर्वस्य च दः' (८।२।४२) से निष्ठा-तकार को नकार आदेश होता है। इस सूत्र से रेफ से परवर्ती नकार को णकार आदेश होता है। वि-उपसर्ग में-विस्तीर्णम् । (२) कुष्णाति । यहां कुश निष्कर्षे (क्रया०प०) धातु से लट्' प्रत्यय है। लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। क्रयादिभ्यः श्ना' (३।११८१) से 'श्ना' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से धातुस्थ षकार से परवर्ती 'श्ना' के नकार को णकार आदेश होता है। पुष पुष्टौ' (क्रया०प०) धातु से-पुष्णाति । 'मुष स्तेये' (क्रया०प०) धातु से-मुष्णाति । (३) तिसृणाम् । यहां तिसृ' शब्द से 'स्वौजसः' (४।१।२) से 'आम्' प्रत्यय है। ह्रस्वनद्यापो नुट्' (७।११५४) से ह्रस्वलक्षण नुट्' आगम है। इस सूत्र से तिसृ' के ऋकार से परवर्ती नाम्' के नकार को वा०-रषाभ्यां णत्व ऋकारग्रहणम्' से णकार आदेश होता है। 'चतसृ' शब्द से-चतसृणाम् । मातृ शब्द से-मातृणाम् । नामि' (६।४।३) से अङ्ग को दीर्घ होता है। पितृ' शब्द से-पितॄणाम् । विशेष: कई आचार्य ऋकार में रेफश्रुति मानकर नकार को णकार आदेश करते हैं। णकारादेशः (२) अट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि।२। प०वि०-अट्-कु-पु-आङ्-नुम्व्यवाये ७१ अपि अव्ययपदम्। स०-अट् च कुश्च पुश्च आङ् च नुम् च ते-अट्कुप्वाङ्नुमः, तै:अटकुप्वाङ्नुम्भि:, तैर्व्यवाय इति अट्कुप्वानुम्व्यवाय:, तस्मिन्अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवाये (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भिततृतीयातत्पुरुषः)। अनु०-संहितायाम्, रषाभ्याम्, न:, ण:, समानपदे इति चानुवर्तते । अन्वय:-संहितायां समानपदे रषाभ्यां नोऽट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि णः । अर्थ:-संहितायां विषये समानपदे वर्तमानाभ्यां रेफषकाराभ्यां परस्य नकारस्य स्थानेऽट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि णकारादेशो भवति । उदा०-अड्व्यवाय:-करणम्, हरणम्, किरिणा, गिरिणा, कुरुणा, गुरुणा। कवर्गव्यवाय:-अर्केण, मूर्खेण, गर्गेण, अर्पण । पवर्गव्यवाय:-दर्पण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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