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________________ अष्टमाध्यायस्य तृतीयः पादः ६३५ (३/१/५६ ) से चिल' के स्थान में 'अङ्' आदेश है। 'शास इदहलो:' (६ । ४ । ३४) से इकारादेश है। इस सूत्र से इण् (इ) से परवर्ती 'शास्' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। तस् (ताम् ) प्रत्यय में- अन्वशिषताम् । झि (अन्) प्रत्यय में - अन्वशिषन् । (२) शिष्ट: । यहां पूर्वोक्त 'शास्' धातु से 'निष्ठा' (३ । २ । १०२ ) से 'क्त' प्रत्यय है । पूर्ववत् 'शास्' को इकारादेश है। इस सूत्र से इण् (इ) से परवर्ती 'शास्' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। 'ष्टुना ष्टुः' (८ |४ |४१) से तकार को टवर्ग टकार होता है। 'क्तवतु' प्रत्यय में शिष्टवान् । (३) उषितः । यहां 'वस निवासे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्वोक्त 'क्त' प्रत्यय है। 'वसतिक्षुधोरिट्' (७/२/५२ ) से प्रत्यय को इडागम है। 'वचिस्वपियजादीनां किति (६ 1१1१०६ ) से पूर्वरूप एकादेश है। इस सूत्र से इण् (उ) से परवर्ती वस्' के षकार को मूर्धन्य अदेश होता है । क्तवतु' प्रत्यय में - उषितवान् । क्त्वा' प्रत्यय में- उषित्वा । (४) जक्षतुः | यहां 'अद भक्षणे' (अदा०प०) धातु से 'लिट्' प्रत्यय है । लकार के स्थान में 'तस्' आदेश और इसके स्थान में 'परस्मैपदानां णल०' ( ३/४ 1 ) से 'अतुस्' आदेश है । 'लिट्यन्तरस्याम्' (२।४।४०) से 'अद्' के स्थान में 'घस्लृ' आदेश होता है । 'गमन' (६/४/१८) से 'घस्' की उपधा का लोप, द्विर्वचनेऽचि (818148) से इस लोपादेश को स्थानिवत् मानकर लिटि धातोरनभ्यासस्य (६/१/८ ) से 'घस्' को द्विर्वचन, 'कुहोश्चुः' (७/४/६२) से अभ्यास घकार को चुत्व झकार और 'अभ्यासे चर्च (८/४/५४) से झकार को जश् जकार होता है। घकार को 'खरि च' (८1४144) से चर् ककार होकर इस सूत्र से कवर्ग (क्) से परवर्ती 'क्स' के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। झि (उस्) प्रत्यय में जक्षुः । यहां 'घसि' से 'घस्लृ अदने' (भ्वा०प०) धातु का भी ग्रहण किया जाता है। (५) अक्षन् । यहां 'अद भक्षणे (अदा०प०) धातु से लुङ्' प्रत्यय है । लकार के स्थान में झि (अन्ति) आदेश है। 'बहुलं छन्दसि' (२।४ /३९ ) से 'अद्' के स्थान में 'घस्लृ ' आदेश होता है । 'मन्त्रे घसरणश० ' (२/४/८०) से च्लि' का लुक, 'घसिभसोर्हलि च' (६ |४|१००) से उपधा का लोप 'खरि च' (८/४/५५) से घकार को 'चर्' ककार होता है। इस सूत्र से कवर्ग (क) से परवर्ती सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। 'संयोगान्तस्य लोप:' (८।२।२३) से संयोगान्त सकार का लोप होता है। मूर्धन्यादेश: (७) स्तौतिण्योरेव षण्यभ्यासात् । ६१ । प०वि०- स्तौति-ण्योः ६ । २ एव अव्ययपदम्, षणि ७।१ अभ्यासात् ५ ।१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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