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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(कु) पुरुष करोति, पुरुष: करोति । पुरुष करता है। पुरुष ४खनति, पुरुष: खनति । पुरुष खोदता है। (पु) पुरुष पचति, पुरुष: पचति । पुरुष पकाता है। वृक्ष फलति, वृक्षः फलति । वृक्ष फलता है, फल देता है।
सिद्धि-(१) पुरुष करोति । यहां इस सूत्र से 'पुरुषः' पद के विसर्जनीय को कवर्ग (क) परे होने पर क जिह्वामूलीय आदेश होता है। दूसरे पक्ष में विसर्जनीय आदेश भी होता है-पुरुष: करोति । ऐसे ही-पुरुष ४खनति, पुरुष: खनति ।
(२) पुरुष पचति । यहां इस सूत्र से 'पुरुषः' पद के विसर्जनीय को पवर्ग (प) परे होने पर ४ प उपध्मानीय आदेश होता है। दूसरे पक्ष में विसर्जनीय आदेश भी होता है-पुरुष: पचति । ऐसे ही-वृक्ष । फलति, वृक्ष: फलति । स-आदेशः
(६) सोऽपदादौ।३८। प०वि०-स: ११ अपदादौ ७।१। स०-पदस्य आदिरिति पदादिः, तस्मिन्-अपदादौ (षष्ठीतत्पुरुषः) । अनु०-पदस्य, संहितायाम्, विसर्जनीयस्य, कुप्वोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां पदस्य विसर्जनीयस्याऽपदाद्यो: कुप्वोः सः।
अर्थ:-संहितायां विषये पदस्य विसर्जनीयस्य स्थानेऽपदाद्यो: कुप्वो: परत: सकारादेशो भवति।
उदा०-(कु) पयस्कल्पम्, यशस्कल्पम्। पयस्कम्, यशस्कम् । पयस्काम्यति, यशस्काम्यति। (पु) पयस्पाशम्, यशस्पाशम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पदस्य)पद के (विसर्जनीयस्य) विसर्जनीय के स्थान में (अपदाद्यो:) अपदादि (कुप्वोः) कवर्ग और पवर्ग वर्ण परे होने पर (स:) सकारादेश होता है।
उदा०-(कु) पयस्कल्पम् । दूध के सदृश । यशस्कल्पम् । यश के सदृश। पयस्कम् । थोड़ा दूध। यशस्कम् । थोड़ा यश। पयस्काम्यति। वह दूध की इच्छा करता है। यशस्काम्यति । वह यश की इच्छा करता है। (पु) पयस्पाशम् । निन्दित दूध। यशस्पाशम् । निन्दित यश, अपयश।
सिद्धि-(१) पयस्कल्पम् । यहां पयस्' शब्द से ईषदसमाप्तौ कल्पब्देश्यदेशीयरः' (५।३।६७) से ईषदसमाप्ति थोड़ी अपूर्णता अर्थ में कल्पप्' प्रत्यय है। पयस्' के सकार को ससजषो रुः' (८।२।६६) से 'ह' आदेश और इसे खरवसानयोर्विसर्जनीयः' (८।३।१५) से विसर्जनीय होता है। इस सूत्र से कल्पप् प्रत्यय का अपदादि कवर्ग (क) परे होने पर विसर्जनीय को सकारादेश होता है। ऐसे ही-यशस्कल्पम् ।
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