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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-किं मलयति । यहां इस सूत्र से 'किम्' के पदान्त मकार को मकरपरक हकार वर्ण परे होने पर मकारादेश होता है। विकल्प पक्ष में 'मोऽनुस्वारः' (८।३।२३) से मकार को अनुस्वारादेश होता है। ऐसे ही कथम् मलयति, कथं मलयति।
मलयति' पद में मल सञ्चलने' (भ्वा०प०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्’ प्रत्यय है। 'ज्वलहलह्मलनमामनुपसर्गाद् वा' (भ्वा० गणसूत्र) से ल' की मित्संज्ञा होकर 'मितां ह्रस्व:' (८।४।९२) से ह्रस्वादेश होता है। नकारादेशविकल्पः
(१५) नपरे नः ।२७। प०वि०-नपरे ७१ न: ११। स०-न: परो यस्मात् स नपर:, तस्मिन्-नपरे (बहुव्रीहिः)। अनु०-पदस्य, संहितायाम्, म:, हे, वा इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां पदस्य मो नपरे हे वा नः ।
अर्थ:-संहितायां विषये पदान्तस्य मकारस्य नकारपरके हकारे परतो विकल्पेन नकारादेशो भवति ।
उदा०-किन् हनुते, किं नुते। कथन् हनुते, कथं नुते ।
आर्यभाषा: अर्थ-(संहितायाम्) सन्धि-विषय में (पदस्य) पदान्त में विद्यमान (म:) मकार के स्थान में (नपरे) नकारपरक (ह) हवर्ण परे होने पर (वा) विकल्प से (न:) नकारादेश होता है। .
उदा०-किन् हनुते, किं हनुते । वह क्या हटाता है? कथन् हनुते, कथं हनुते । वह कैसे हटाता है ?
सिद्धि-किन् हनुते । यहां इस सूत्र से 'किम्' के पदान्त मकार को नकारपरक हवर्ण परे होने पर नकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में मोऽनुस्वारः' (८।३।२३) से अनुस्वारादेश होता है। ऐसे ही-कथन् हुनुते, कथं हनुते ।
'हुनुते' पद में हनुङ् अपनयने (अदा०आ०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है।
{आगमप्रकरणम्} कुकटुगागमविकल्पः
(१) णोः कुकटुक् शरि।२८। प०वि०-णो: ६।२ कुकटुक् १।१ शरि ७।१।
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