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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः अन्वय:-पूर्वं बहुवचनमाऽऽमन्त्रितं पदं विशेषवचने समानाधिकरणे आमन्त्रिते विभाषितमऽविद्यमानवत् ।
अर्थ:-पूर्व बहुवचनमाऽऽमन्त्रितं विशेषवाचिनि समानाधिकरणे आमन्त्रिते पदे परतो विकल्पेनाऽविद्यमानवद् भवति।
उदा०-देवाः शरण्याः। देवाः शरण्या:। ब्राह्मणा वैर्याकरणाः । ब्राह्मणा वैयाकरणाः।
आर्यभाषा: अर्थ-(पूर्वम्) किसी पद से पूर्ववर्ती (बहुवचनम्) बहुवचनान्त (आमन्त्रितम्) आमन्त्रित (पदम्) पद (विशेषवचने) विशेषवावी (समानाधिकरणे) एक अधिकरणवाला (आमन्त्रिते) आमन्त्रितान्त पद परे होने पर (विभाषितम्) विकल्प से (अविद्यमानवत्) अविद्यमान के समान होता है।
उदा०-देवाः शरण्या: । देवाः शरण्या: । हे शरण के योग्य देवजनो ! ब्राह्मणा वैयाकरणाः । ब्राह्मणा वैयाकरणा: । हे वैयाकरण ब्राह्मणो !
सिद्धि-देवा: शरण्याः। यहां शरण्याः' पद से पूर्ववर्ती, बहुवचनान्त, 'देवाः' आमन्त्रितान्त पद विशेषवाची, समानाधिकरणताले 'शरण्या:' पद के परे होने पर इस सूत्र से अविद्यमान के समान होता है। अत: 'आमन्त्रितस्य च (८।१।१९) से पद से परवर्ती आमन्त्रित शरण्या: पद को सर्वानुदात्त नहीं होता है, अपितु आमन्त्रितस्य च' (६।१।१९८) से आधुदात्त.स्वर होता है। विकल्प पक्ष में विद्यमान के समन होता है, अत: आमन्त्रितस्य च' (८।१।१९) से पद से परवर्ती 'शरण्या:' आमन्त्रित पद को सर्वानदात्त स्वर होता है-देवाः शरण्या: । ऐसे ही-ब्राह्मणा वैयाकरणा. । ब्राह्मणा वैयाकरणाः ।
विशेषमहाभाष्य में विभाषितं विशेषवचने' ऐसा सूत्रपाठ है। वहां बहुवचने पद पठित नहीं है। काशिकावृत्ति में इसका विस्पष्टार्थ पाठ स्वीकार किया है।
।। इति अविद्यमानवद्भावप्रकरणम् ।।
इति पण्डितसुदर्शनदेवाचार्यविरचिते पाणिनीयाष्टाध्यायीप्रवचने
अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः ।
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