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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
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(२) तिनिघात - देवदत्त ! पच॑सि । हे देवदत्त ! तू पकाता है। यहां 'पचति' से 'देवदत्त' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से 'तिङ्ङतिङ:' ( ८1१।२८) से तिङन्त 'पचति' पद को सर्वानुदात्त = निघात नहीं होता है।
(३) युष्मद- अस्मद्विषयक आदेशाभाव-देवदत्त ! तव ग्रामः स्वम् । हे देवदत्त ! ग्राम तेरा धन (सम्पत्ति) है । देवदत्त ! मम ग्रामः स्वम् । हे देवदत्त ! ग्राम मेरा धन है। यहां 'तव' पद से पूर्ववर्ती देवदत्त' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से 'तेमयावेकवचनस्य' (८ । १ । २२ ) से पद से परे युष्मद्- अस्मद् के स्थान में ते, मे आदेश नहीं होते हैं ।
(४) यावद् देवदत्त ! पचसि । हे देवदत्त ! तू जितना पकाता है। यहां 'पचसि ' पद से पूर्ववर्ती देवदत्त' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से 'पूजायां नानन्तरम्' ( ८1१1३७) से अनन्तर = व्यवधानरहित तिङन्त पचसि' पद को सर्वानुदात्त स्वर होता है ।
(५) देवदत्त ! जातु पर्चसि । हे देवदत्त ! तू जितना पकाता है। यहां 'जातु' पद से पूर्ववर्ती देवदत्त' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से 'जात्वपूर्वम्' (१/८/४७) से. विहित अपूर्ववर्ती जातु निपात से युक्त तिङन्त 'पचसि ' पद को सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है।
(६) आहो देवदत्त ! पर्चसि । हे देवदत्त ! अथवा तू पकाता है । उताहो देवदत्त ! पच॑सि । हे देवदत्त ! अथवा तू पकाता है। यहां 'पचसि' पद से पूर्ववर्ती देवदत्त' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से 'आहो उताहो चानन्तरम्' ( ८1१/४९ ) से ि 'पचसि' पद को सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है ।
(७) आम् भोः पचसि देवदत्त ! रे देवदत्त ! तू पकाता है। यहां 'पचसि' पद से पूर्ववर्ती 'भो: ' आमन्त्रित पद के अविद्यमानवत् होने से देवदत्त' आमन्त्रित पद 'पचसि' पद से एकपदान्तरित हो जाता है । अत: 'आम एकान्तरमामन्त्रितमनन्तिकें (८ 18 144 ) से सर्वानुदात्त नहीं होता है अपितु 'आमन्त्रितस्य च' ( ६ । १ । १९८ ) से आद्युदात्त स्वर होता है। अविद्यमानवत् प्रतिषेधः
(२) नामन्त्रिते समानाधिकरणे (सामान्यवचनम् } |७३ | प०वि०-न अव्ययपदम्, आमन्त्रिते ७ ।९ समानाधिकरणे ७ । १ {सामान्यवचनम् १।१} ।
सo - समानम् अधिकरणं यस्य तत् समानाधिकरणम् तस्मिन्समानाधिकरणे (बहुव्रीहिः) ।
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