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________________ अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः ४७७ योग होने पर (प्रथमा) प्रथमा (तिङ्) तिङ्-विभक्ति (विभाषा) विकल्प से (सर्वानुदात्ता) सर्वानुदात्त (न) नहीं होती है। उदा०-वियोग) अहर्वे देवानामासीद्रात्रिरसुराणाम् (तै०सं० १।५।९।२)। आसीत् । दिन निश्चय से देवताओं का था और रात्रि असुरों की थी। बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, शण्डामर्कावसुराणाम् (तै०सं० ६।४।१०।१)। (आस्ताम्)। बृहस्पति निश्चय से देवताओं का पुरोहित था और शण्ड तथा मर्क असुरों के पुरोहित थे। (वावयोग) अयं वाव हस्त आसीत (काठ०सं० ३६ १७)। यह प्रसिद्ध हाथ था। नेतर आसीत् । दूसरा नहीं था। सिद्धि-अहर्वे देवानामासीत् । यहां छन्द विषय में, ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, देवानाम्' पद से परवर्ती, वै' शब्द के योग में प्रथमा 'आसीत्' तिङन्त विभक्ति को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। अत: यथाप्राप्त स्वर होता है। विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त है-आसीत् । ऐसे ही वावयोग में-अयं वाव हस्त आसीत् । विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त है-नेतर आसीत् । सर्वानुदात्तविकल्प: (४८) एकान्याभ्यां समर्थाभ्याम्।६५। प०वि०-एक-अन्याभ्याम् ५ ।२ समर्थाभ्याम् ५।२। स०-एकश्च अन्यश्च तौ एकान्यौ, ताभ्याम्-एकान्याभ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। समोऽर्थो ययोस्तौ समझे, ताभ्याम्-समर्थाभ्याम् (बहुव्रीहिः)। वा०-'शकन्ध्वादिषु पररूपम्' (६।१।९१) इत्यनेनाऽकारस्य पररूपत्वम्। अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, नं, योगे, प्रथमा, विभाषा, छन्दसीति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि अपादादौ पदात् समर्थाभ्यामेकान्याभ्यां योगे च प्रथमा तिङ् विभाषा सर्वानुदात्ता न। अर्थ:-छन्दसि विषयेऽपादादौ वर्तमाना पदात् परा समर्थाभ्यामेकान्याभ्यां शब्दाभ्यां योगे सति प्रथमा तिड्विभक्तिर्विकल्पेन सर्वानुदात्ता न भवति। उदा०-(एकयोग:) प्रजामेका जिन्वत्यूर्जमेका राष्ट्रमेका रक्षति देवयूनाम् (शौ०सं० ८।९।१३) जिन्वति । (अन्ययोग:) तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति (ऋ० १।१६४ ।२०) अत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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