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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
४५७ उदा०-किं देवदत्त: पचति आहोस्विद् भुङ्क्ते। क्या देवदत्त पकाता है अथवा भोजन करता है। किं देवदत्त: शेते आहोस्विद् अधीते। क्या देवदत्त सोता है अथवा पढ़ता है।
सिद्धि-किं देवदत्त: पर्चति आहोस्विद् भुङ्क्ते। यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, देवदत्त पद से परवर्ती किम्' इस निपात से युक्त, उपसर्गरहित और प्रतिषेध वर्जित तिङन्त पचति' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। ऐसे ही-किं देवदत्त: शेते आहोस्विद् अधीते । सर्वानुदात्तविकल्पः
(२८) लोपे विभाषा।४५। प०वि०-लोपे ७।१ विभाषा ११ ।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, किम्, क्रियाप्रश्ने, अनुपसर्गम्, अप्रतिषिद्धमिति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ पदात् क्रियाप्रश्ने निपातस्य किमो लोपे अनुपसर्गम् अप्रतिषिद्धं तिङ् पदं विभाषा सर्वमनुदात्तं न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं क्रियाप्रश्नेऽर्थे निपातस्य किमो लोपे सति उपसर्गवर्जितं प्रतिषेधवर्जितं च तिङन्तं पदं विकल्पेन सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-देवदत्त: पचति, आहोस्वित् पठति । देवदत्त: पचति, आहोस्वित्
पठति।
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (क्रियाप्रश्ने) क्रिया के पूछने अर्थ में वर्तमान (निपातस्य) निपात-संज्ञक (किम:) किम् शब्द का (लोप) हो जाने पर (अनुपसर्गम्) उपसर्ग से रहित
और (अप्रतिषिद्धम्) प्रतिषेध से रहित (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा०-देवदत्त: पर्चति, आहोस्वित् पठति । देवदत्त: पचति, आहोस्वित् पठति । क्या देवदत्त पकाता है अथवा पढ़ता है ?
सिद्धि-देवदत्त: पति, आहोस्वित् पठति । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, देवदत्त पद से परवर्ती, क्रियाप्रश्न अर्थ में वर्तमान किम्' शब्द के लोप में, उपसर्ग और प्रतिषेध से रहित तिङन्त पचति' और 'पठति’ पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त स्वर है। ऐसे ही-देवदत्त: पचति आहोस्वित् पठति।
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