SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः ४५५ उदा०-अधीष्व माणवक ! पुरा विद्योतते विद्युत्/विद्योतते । पुरास्तनयति स्तनयित्नु:/स्तनयति । आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (निपातेन) निपात-संज्ञक (पुरा) पुरा शब्द से (च) भी (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (परीप्सायाम्) त्वरा-शीघ्रता अर्थ में (विभाषा) विकल्प से (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है। उदा०-अधीष्व माणवक ! पुरा विद्योतते विद्युत् । रे बालक ! तू अध्ययन कर क्योंकि शीघ्र ही बिजली चमकनेवाली है। अधीष्व माणवक ! पुरा स्तनयति स्तनयितुः । हे बालक ! तू अध्ययन कर क्योंकि बादल शीघ्र गर्जनेवाला है। अमावस्या आदि पर्वो के समान विद्युत्-द्योतन आदि में अध्ययन करना वर्जित है। सिद्धि-अधीष्व माणवक ! पुरा विद्योतते विद्युत। यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, पुरा' पद से परवर्ती और इससे संयुक्त तिङन्त विद्योतते' पद परीप्सा अर्थ में इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है, विकल्प पक्ष में सर्वानुदात्त होता है-विद्योतते। ऐसे ही-पुरा स्तनयंति स्तनयित्नुः स्तनयति। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः (२६) नन्वित्यनुज्ञैषणायाम्।४३। प०वि०-ननु अव्ययपदम्, इति अव्ययपदम्, अनुज्ञेषणायाम् ७।१। स०-एषणा=प्रार्थनेत्यर्थः । अनुज्ञाया एषणेति अनुज्ञेषणा, तस्याम्अनुऔषणायाम् (षष्ठीतत्पुरुष:)। अनुज्ञा-प्रार्थनेत्यर्थः । अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातै:, युक्तमिति चानुवर्तते। ___ अन्वय:-अपादादौ पदाद् निपातेन ननु इति युक्तं तिङ् पदम् अनुऔषणायां सर्वमनुदात्तं न। अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं निपातेन ननु इत्यनेन युक्तं तिङन्तं पदम् अनुज्ञेषणायामर्थे सर्वमनुदात्तं न भवति। उदा०-ननु करोमि भो: । ननु गच्छामि भोः। आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (निपातेन) निपात-संज्ञक (ननु) ननु (इति) इस शब्द से (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद को (अनुज्ञेषणायाम्) अनुज्ञा आज्ञा की प्रार्थना अर्थ में (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy