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________________ ४५२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सर्वानुदात्तप्रतिषेधः (२२) तुपश्यपश्यताहै: पूजायाम्।३६ । प०वि०-तु-पश्य-पश्यत-अहै: ३।३ पूजायाम् ७।१ । स०-तुश्च पश्यश्च पश्यतश्च अहश्च ते तुपश्यपश्यताहा:, तै:तुपश्यपश्यताहै: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । ___ अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, निपातै:, युक्तम्, इति चानुवर्तते। अन्वय:-अपादादौ पदाद् निपातैस्तुपश्यपश्यताहैर्युक्तं तिङ् पदं पूजायां सर्वमनुदात्तं न। अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं निपातैस्तुपश्यपश्यताहैर्युक्तं तिङन्तं पदं पूजायां विषये सर्वमनुदात्तं न भवति । उदा०-(तु) माणवकस्तु भुङ्क्ते शोभनम् । (पश्य) पश्य माणवको भुङ्क्ते शोभनम्। (पश्यत) पश्यत माणवको भुङ्क्ते शोभनम् । (अह) अह माणवको भुङ्क्ते शोभनम् । आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (निपातैः) निपात-संज्ञक (तुपश्यपश्यताहै:) तु, पश्य, पश्यत, अह इन शब्दों से (युक्तम्) संयुक्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (पूजायाम्) पूजा विषय में (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है। उदा०-(तु) माणवकस्तु भुङ्क्ते शोभनम् । यह बालक तो शोभन विधि से खाता है। (पश्य) पश्य माणवको भुङ्क्ते शोभनम् । तू देख, यह बालक शोभन विधि से खाता है। (पश्यत) पश्यत माणवको भुङ्क्ते शोभनम् । तुम सब देखो, यह बालक शोभन विधि से खाता है। (अह) अह माणवको भुङ्क्ते शोभनम् । आश्चर्य है, यह बालक शोभन विधि से खाता है। सिद्धि-माणवकस्तु भुङ्क्ते शोभनम् । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, तु' पद से परवर्ती तथा इससे संयुक्त तिङन्त 'भुङ्क्ते' पद पूजा विषय में इस सूत्र से सर्वानुदात्त नहीं होता है अपितु पूर्ववत् अन्तोदात्त होता है। ऐसे ही पश्य माणवको भुङ्क्ते शोभनम्' आदि। विशेष: (१) यहां तु' और 'अह' निपात हैं अत: निपात-विशेषण का इन्हीं के साथ सम्बन्ध है, 'पश्य' और 'पश्यत' पदों के साथ नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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