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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(सु) कतरत् तिष्ठति। दो में से कौन-सा खड़ा है। कतमत् तिष्ठति। बहुत में से कौन-सा खड़ा है। इतरत् । दो में से कोई। अन्यतरत् । दो में से कोई। अन्यत् । कोई। (अम्) त्वं कतरत् पश्य । तू दो में से किसी के देख। कतमत् पश्य । तू बहुत में से किसी को देख । इतरत् । दो में से किसी को। अन्यतरत् । दो में से किसी को। अन्यत् । किसी को। ये 'डतर' आदि पांच शब्द सर्वादिगण (१।१।२७) में पठित हैं। सिद्धि-(१) कतरत् । किम्+डतरच् । किम्+अतर । क्+अतर । कतर ।। कतर+सु। कतर+अद्ड्। कतर+अद्। कतर्+अत् । कतरत्। यहां प्रथम किम्' शब्द से किंयत्ततदोर्निर्धारणे द्वयोरेकस्य डतरच्' (५।३।९२) से 'डतरच्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के डित् होने से वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोप:' (६।४।१४३) से किम्' के टि-भाग (इम्) का लोप होता है। तत्पश्चात् डतर-प्रत्ययान्त कतर' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से सु' के स्थान में 'अड्' आदेश होता है। इस आदेश के भी 'डित्' होने से पूर्ववत् कतर' के टि-भाग (अ) का लोप होता है। इसका फल यह है कि प्रथमयोः पूर्वसवर्ण:' (६।१।१००) से प्राप्त दीर्घ रूप एकादेश (अ+अ=आ) नहीं होता है। ऐसे ही 'अम्' प्रत्यय करने पर भी-कतरत् । ऐसे ही-इतरत् आदि। .. (२) कतमत् । यहां प्रथम 'किम्' शब्द से वा बहूनां जातिपरिप्रश्ने डतमच (५।३।९३) से 'डतमच्’ प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। अद्डादेश-प्रतिषेधः (२६) नेतराच्छन्दसि।२६। प०वि०-न अव्ययपदम्, इतरात् ५।१ छन्दसि ७।१।। अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, स्वमोः, अद्ड् इति चानुवर्तते । अन्वय:-छन्दसि इतराद् अङ्गात् स्वमो: प्रत्यययोरद्ड् न । अर्थ:-छन्दसि विषये इतराद् अङ्गाद् उत्तरयो: स्वमो: प्रत्यययो: स्थानेऽद्डादेशो न भवति। उदा०-मृतमितरमाण्डमवापद्यत (मै०सं० १।६।१२) वार्बजमितरम् । आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (इतरात्) इतर इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (स्वमो:) सु और अम् (प्रत्यययोः) प्रत्ययों के स्थान में (अद्इ) अद्ड् आदेश (न) नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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