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________________ ३६८ इस्-आदेश: (३४) सनि मीमाघुरभलभशकपतपदामच इस् । ५४ । प०वि०- सनि ७ । १ मी मा घुरभ - लभ - शक-पत-पदाम् ६ । ३ अच: ६ ।१ इस् १ ।१ । स०-मीश्च माश्च घुश्च रभश्च लभश्च शकश्च पतश्च पद् च ते मी माघुरभलभशकपतपद:, तेषाम्-मीमाघुरभलभशकपतपदाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-अङ्गस्य, सीति चानुवर्तते । अन्वयः-मीमाघुरभलभशकपतपदामऽङ्गानामऽचः सि सनि इस् । अन्वयः - मीमाघुरभलभशकपतपदामऽङ्गानामऽच: स्थाने सकारादौ सनि प्रत्यये परत इसादेशो भवति । उदाहरणम् शब्दरूपम् भाषार्थ धातु: (१) मी (मीञ्) मित्सति (डुमिञ्) प्रमित्सति (२) मा (मा) मित्सति (माङ) मित्सते (मेङ) अपमित् (३) घु (दा) पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् (धा) (४) रभ (५) लभ (६) शक (७) पत (८) पद Jain Education International दित्सति धित्सति आरिप्सते आलिप्सते शिक्षति पित्सति प्रपित्सते वह हिंसा करना चाहता है । वह फैंकना चाहता है । वह मांपना चाहता है । वह मांपना/शब्द करना चाहता है । वह प्रदान करना चाहता है । वह दान करना चाहता है । वह धारण-पोषण करना चाहता है । वह आरम्भ करना चाहता है 1 वह प्राप्त करना चाहता है । वह शक्त (समर्थ) होना चाहता है । वह गिरना चाहता है । वह चलना चाहता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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