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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् समास है। 'समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से क्त्वा' को 'ल्यप्' आदेश है। यह स्थानिवद्भाव से कित्' है। इस सूत्र से शीङ्' धातु को यकारादि कित् ल्यप् प्रत्यय परे होने पर 'अयङ्' आदेश होता है। ऐसे ही-उपशय्य । हस्वादेशः
(३) उपसर्गाद्धस्व ऊहतेः ।२३। प०वि०-उपसर्गात् ५।१ ह्रस्व: १।१ ऊहते: ६।१ । अनु०-अगस्य, यि, क्ङिति इति चानुवर्तते। अन्वय:-उपसर्गाद् ऊहतेरङ्गस्य यि क्डिति ह्रस्व: ।
अर्थ:-उपसर्गाद् उत्तरस्य ऊहतेरङ्गस्य यकारादौ किति डिति च प्रत्यये परतो ह्रस्वो भवति।
उदा०-तेन समुह्यते। तेन अभ्युद्यते। स समुह्य गतः। सोऽभ्युह्य गत:।
आर्यभाषा: अर्थ-(उपसर्गात्) उपसर्ग से परे (ऊहते:) ऊहति-ऊह इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (यि) यकारादि (क्डिति) कित् डित् प्रत्यय परे होने पर (अयङ्) अयङ् आदेश होता है।
उदा०-तेन समुह्यते । उसके द्वारा इकट्ठा किया जाता है। तेन अभ्युह्यते । उसके द्वारा तर्क किया जाता है। स समुह्य गतः । वह इकट्ठा करके गया। सोऽभ्युह्य गतः । वह तर्क करके गया।
सिद्धि-(१) समुह्यते । यहां सम् उपसर्गपूर्वक ऊह वितर्के' (भ्वा०आ०) धातु से 'वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से भाव-अर्थ में लट्' प्रत्यय है। 'सार्वधातुके यक्' (३।१।६७) से 'यक्' विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से ऊह' धातु को यकारादि, कित् यक्’ प्रत्यय परे होने पर हस्वादेश (उ) होता है। ऐसे ही अभि-उपसर्गपूर्वक ऊह' धातु से-अभ्युह्यते।
(२) समुह्य । यहां सम्-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त ऊह' धातु से 'समानकर्तृकयो: पूर्वकाले' (३।४।२२) से 'क्त्वा' प्रत्यय है और इसके स्थान में समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यम्' (७।१।३७) से ल्यप्’ आदेश है। इस सूत्र से ऊह' धातु को यकारादि कित् ल्यप्' प्रत्यय परे होने पर ह्रस्व आदेश होता है। ऐसे ही अभि-उपसर्गपूर्वक ऊह' धातु से-अभ्युह्य।
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