SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ३४१ (२/४/७२) से लुक् होता है। इस सूत्र से 'शीङ्' धातु को सार्वधातुक-संज्ञक 'त' प्रत्यय परे होने पर गुण (ए) होता है । 'सार्वधातुकमपित्' (१।२।४) से 'त' प्रत्यय के ङिद्वत् होने से 'क्ङिति च' (१1१14) से गुण प्रतिषेध प्राप्त था । ऐसे ही 'आताम्' प्रत्यय में-शयाते । 'झ' प्रत्यय में- शेरते। यहां 'शीङने रुट्' (७/१/६ ) से 'झ' के स्थान में 'अत्' आदेश और इसे 'रुट्' आगम होता है। अयङ्-आदेशः (२) अयङ् यि क्ङिति । २२ । प०वि० - अयङ् १ ।१ यि ७ । १ क्ङिति ७ । १ । स०-कश्च ङश्च तौ क्डौ, इच्च इच्च तौ इतौ, क्ङावितौ यस्य स क्ङित्, तस्मिन् क्ङिति (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि: ) । अनु० - अङ्गस्य इत्यनुवर्तते । अन्वयः - शीङोऽङ्गस्य यि क्ङिति अयङ् । अर्थ:-शीङोऽङ्गस्य यकारादौ किति ङिति च प्रत्यये परतोऽयङादेशो भवति । उदा० - तेन शय्यते । स शाशय्यते । प्रशय्य । उपशय्य । आर्यभाषाः अर्थ- ( शीङ: ) शीङ् इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (यि) यकारादि ( क्ङिति ) कित्, ङित् प्रत्यय परे होने पर (अयङ्) अयङ् आदेश होता है। उदा० - तेन शय्यते। उसके द्वारा सोया जाता है । स शाशय्यते । वह पुन:-पुन:/ अधिक सोता है। प्रशय्य । अधिक सो कर । उपशय्य । पास सो कर । सिद्धि - (१) शय्यते। यहां 'शीङ् स्वप्ने' (अदा०आ०) धातु से 'वर्तमाने लट् (३ । २ । १२३) से भाव - अर्थ में 'लट्' लकार है । 'सार्वधातुके यक्' (३ | १ | ६७) से 'यक्' विकरण- प्रत्यय होता है। इस सूत्र से 'शीङ्' धातु के यकारादि कित् यक् प्रत्यय परे होने पर अयङ् अन्त्य आदेश होता है। श् अय्+य+ते । शय्यते । (२) शाशय्यते। यहां पूर्वोक्त शीङ्' धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे (३।१।२२ ) से 'यङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'शीङ्' धातु को यकारादि, ङित् यङ् प्रत्यय परे होने पर 'अयङ्' आदेश होता है। परत्व और नित्यत्व से 'शीङ्' को 'अयङ्' आदेश करने पर ‘'सन्यङो:' ( ६ 1१1९ ) से द्वित्व होता है। 'दीर्घोऽकितः' (७/४/८३) से अभ्यास- अकार को दीर्घ होता है। (३) प्रशप्य। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त 'शीङ्' धातु से 'समानकर्तृकयोः पूर्वकाले' (३।४।२१) से 'क्त्वा' प्रत्यय है । 'कुगतिप्रादयः' (२।२1१८) से प्रादितत्पुरुष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy