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________________ सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ३३६ उदा०-अश्वत् । उसने गति/वृद्धि की। अश्वताम् । उन दोनों ने गति/वृद्धि की। अश्वन्। उन सब ने गति / वृद्धि की । सिद्धि-अश्वत् । यहां 'टुओश्वि गतिवृद्धयो:' (भ्वा०प०) धातु से 'लुङ्' (३ ।२ ।११०) से 'लुङ्' प्रत्यय है। 'जृस्तम्भुम्रुचुम्लुचुमुचुग्लुचुग्लुञ्चुश्विभ्यश्च' (३ 1१1५८ ) से चिल के स्थान में 'अङ्' आदेश होता है। इस सूत्र से 'श्वि' धातु को 'अङ्' प्रत्यय परे होने पर अकार अन्त्य आदेश होता है। अ+श्व् अ+अ+त् । इस स्थिति में 'अतो गुणे' (६ 1१1९७) से प्रथम अकार को पररूप एकादेश ( अ ) होता है। ऐसे ही तस् (ताम् ) प्रत्यय में- अश्वताम् । 'झि' प्रत्यय में- अश्वन् । {आगमविधिः } पुम्-आगमः (१) पतः पुम् | १६ | प०वि० - पत: ६।१ पुम् १ । १ । अनु० - अङ्गस्य, अङीति चानुवर्तते । अन्वयः - पतोऽङ्गस्याऽङि पुम् । अर्थ :- पतोऽङ्गस्याऽङि प्रत्यये परतः पुमाऽऽगमो भवति । उदा० - अपप्तत् । अपप्ताम्। अपप्तन् । आर्यभाषाः अर्थ- (पतः ) पत् इस (अङ्ग्ङ्गस्य) अङ्ग को (अङि) अङ् प्रत्यय परे होने पर (पुम्) पुम् आगम होता है। उदा०-अपप्तत्। वह गिरा । अपप्ताम् । वे दोनों गिरे । अपप्तन् । सब गिरे। सिद्धि-अपप्तत्। यहां ‘पत्लृ गतौं' (भ्वा०प०) धातु से 'लुङ्' (३1२ 1११० ) से 'लुङ्' प्रत्यय है । 'पुषादिद्युताद्द्लृदितः परस्मैपदेषु' (३1९144 ) से चिल' के स्थान में लृदिल्लक्षण 'अङ्' आदेश होता है। इस सूत्र से 'पत्' धातु को 'अङ्' प्रत्यय परे होने पर 'पुम्' आदेश होता है। अ+प पुम् त्+अ+त् । अ+प प् त्+अ+त् । अपप्तत्। 'पुम्' आगम मित् होने से 'मिदचोऽन्त्यात् परः ' (१।१।४७ ) के नियम से 'पत्' के अन्त्य अच् से परे किया जाता है। ऐसे ही तस् (तास) प्रत्यय में- अपप्ताम् । झि' प्रत्यय में- अपप्तन् । उम्-आगमः Jain Education International (२) वच उम् | २० | प०वि० - वच: ६ |१ उम् १।१ । अनु०-अङ्गस्य, अङीति चानुवर्तते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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