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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः अनु०-अङ्गस्य, सम्बुद्धाविति चानुवर्तते। अन्वय:-अम्बार्थनद्योरङ्गयो: सम्बुद्धौ ह्रस्वः ।
अर्थ:-अम्बार्थानां नदीसंज्ञकानां चाऽङ्गानां सम्बुद्धौ प्रत्यये परतो ह्रस्वो भवति।
उदा०-(अम्बार्थक:) हे अम्ब ! हे अक्क ! हे अल्ल ! (नदी) हे कुमारि ! हे शाङ्गुरवि ! हे ब्रह्मबन्धु ! हे वीरबन्धु !
आर्यभाषा: अर्थ-(अम्बार्थनद्यो:) अम्बा के पर्यायवाची और नदी-संज्ञक (अङ्गानाम्) अगों को (सम्बुद्धौ) सम्बुद्धि-संज्ञक (प्रथमा-एकवचन) प्रत्यय परे होने पर (ह्रस्व:) ह्रस्व होता है।
उदा०-(अम्बार्थक) हे अम्ब ! हे अक्क! हे अल्ल!। हे मात: ! (नदी) हे कुमारि !हे कन्ये!। हे शारवि! हे शार्गरवी नामक ऋषिकन्ये!। हे ब्रह्मबन्धु!। हे पतितब्राह्मणी !। हे वीरबन्धु !। हे पतित क्षत्रिया नारी!।
सिद्धि-अम्ब । अम्बा+सु । अम्ब+स् । अम्ब+० । अम्ब।
यहां 'अम्बा' शब्द से सम्बुद्धि अर्थ में स्वौजसः' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'अम्बा' शब्द को सम्बुद्धिवाची सु' प्रत्यय परे होने पर ह्रस्व होता है। तत्पश्चात् 'एहस्वात् सम्बुद्धेः' (६।१।६८) से सम्बुद्धिवाची सु' प्रत्यय का लोप होता है। ऐसे ही अम्बार्थक 'अक्का' शब्द से-हे अक्क! 'अल्ला' शब्द से-हे अल्ल! नदीसंज्ञक 'कुमारी' शब्द से-हे कुमारि ! 'ब्रह्मबन्धू' शब्द से-हे ब्रह्मबन्धु!। वीरबन्धू' शब्द सेहे वीरबन्धु !। कुमारी आदि शब्दों की यू स्त्र्याख्यौ नदी' (१।४।३) से नदी-संज्ञा है। गुणादेशः
(८) ह्रस्वस्य गुणः।१०८ | प०वि०-हस्वस्य ६१ गुण: १।१। अनु०-अङ्गस्य, सम्बुद्धाविति चानुवर्तते।। अन्वय:-ह्रस्वस्याऽङ्गस्य सम्बुद्धौ गुणः । अर्थ:-हस्वान्तस्याऽङ्गस्य सम्बुद्धौ प्रत्यये परतो गुणो भवति। उदा०-हे अग्ने ! हे वायो ! हे पटो!
आर्यभाषा: अर्थ- (ह्रस्वस्य) ह्रस्व वर्ण जिसके अन्त में है उस (अङ्गस्य) अङ्ग को (सम्बुद्धौ) सम्बुद्धि-संज्ञक (प्रथमा-एकवचन) प्रत्यय परे होने पर (गुणः) गुण होता है।
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