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________________ २५४ दीर्घः (३४) शमामष्टानां दीर्घः श्यनि । ७४ । प०वि० - शमाम् ६ । ३ बहुवचनमादित्वद्योतनार्थम्, दीर्घः १ । १ श्यनि ७ । १ । पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम् अनु० - अङ्गस्येत्यनुवर्तते । अन्वयः - शमामष्टानामङ्गानां श्यनि दीर्घः । अर्थ:- शमाम् = शमादीनामष्टामऽङ्गानां श्यनि प्रत्यये परतो दीर्घो भवति । उदाहरणम्- धातुः रूपम् (१) शम् स शाम्यति (२) तम् स ताम्यति (३) दम् सा स श्राम्यति स भ्राम्यति (४) श्रम् (५) भ्रम् (६) क्षम् स क्षाम्यति (७) क्लम् स क्लाम्यति (८) मदी समाद्यति वह हर्षित होता है । भाषार्थ: वह उपशमन करता है । वह आकाङ्क्षा ( इच्छा) करता है । वह उपशमन करता है। वह श्रान्त होता है । वह अवस्थित नहीं रहता है, वह क्षमा ( सहन) करता है 1 वह ग्लानि करता है । Jain Education International आर्यभाषाः अर्थ- (शमाम्) शम् आदि (अष्टानाम्) आठ (अङ्गानाम्) अङ्गों को (श्यनि) श्यन् प्रत्यक्ष परे होने पर (दीर्घ) दीर्घ होता है। घूमता है 1 उदा० - उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है । सिद्धि - शाम्यति । वहा 'अमु उपशमे' (दि०प०) धातु से 'वर्तमाने लट् (३ 1 २ 1 १२३) से लट्' प्रत्यय है। दिवादिभ्यः श्यन्' (३ | १/६९ ) से 'श्यन्' विकरण- प्रत्यय होता है। इस सूत्र से इसे 'श्यन्' प्रत्यय परे होने पर दीर्घ होता है। ऐसे ही 'तमु काङ्क्षायाम्' धातु से- ताम्यति । 'दमु उपशमें' धातु से - दाम्यति । 'श्रमु तपसि खेदे च ' धातु से - भ्राम्यति । 'क्ष सहने' धातु से क्षाम्यति । 'क्लमु ग्लानौँ' धातु से - क्लाम्यति । 'मदी हर्षे' धातु से - माद्यति । ये 'शमु उपशमें' आदि आठ धातु पाणिनीय धातुपाठ के दिवादिगण में पठित हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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