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________________ सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः २६६ (२) जङ्घन्यते । हन्+यङ् । हन्+य । हन्- हन्+य । ह हन्भ्य । ह-घन्+य । ह नुक्- घन्+य । हन्- घन्+य। झन् घन्+य । जन्- घन्+य । जङ्- घन्+य । जङ्घन्य+लट् । जङ्घन्यते । से यहां पूर्वोक्त 'हन्' धातु से 'धातोरेकाचो हलादे: क्रियासमभिहारे यङ् (३ । १ । २२) से 'यङ्' प्रत्यय है । 'सन्यङो:' ( ६ 1१1९ ) से हन्' धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र अभ्यास से उत्तरवर्ती 'हन्' के हकार को कवर्ग घकारादेश होता है। 'नुगतोऽनुनासिकान्तस्य' (७/४/८५) से अभ्यास को 'नुक्' आगम और इसे 'अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः ' (८/४/५८) से परसवर्ण होता है । अभ्यास- कार्य पूर्ववत् है । (३) जघन । हन्+लिट् । हन्+मिप् । हन्+णल्। हन्+अ । हन्-हन्+अ। ह+हन्+अ । ह-घन्+अ । झ- हन्+अ । जघन्+अ । जघन । यहां पूर्वोक्त हन्' धातु से 'परोक्षे लिट्' (३।२।११५ ) से लिट्' प्रत्यय है। 'लिटि धातोरनभ्यासस्य' ( ६ 1१1८) से 'हन्' धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से अभ्यास से उत्तरवर्ती 'हन्' धातु के हकार को कवर्ग घकारादेश होता है। 'णलुत्तमो वा' (७ 1१1९१) से उत्तमपुरुष का णलु विकल्प से णित् है अतः विकल्प-पक्ष में 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६ ) से प्राप्त उपधावृद्धि नहीं होती है। यह अणित् पक्ष का उदाहरण है। णित्-पक्ष में तो पूर्व-सूत्र (७।३।५४) से कुत्व हो जाता है। अभ्यास-कार्य पूर्ववत् है । कु-आदेश: (१६) हेरचङि । ५६ । प०वि० - हे : ६ | अचङि ७ । १ । सo - न च इति अच, तस्मिन् अचङि ( नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - अङ्गस्य, कु:, ह, अभ्यासादिति चानुवर्तते । अन्वयः - अभ्यासाद् हेरङ्गस्य होऽचङि कुः । अर्थ:-अभ्यासाद् उत्तरस्य हिनोतेरङ्गस्य हकारस्य स्थाने चवर्जित प्रत्यये परत: कवगदिशो भवति । उदा० - स प्रजिघीषति । स प्रजेधीयते । स प्रजिघाय । आर्यभाषा: अर्थ- (अभ्यासात्) अभ्यास से परे (ह: ) हि = हिनोति इस (अङ्ग्ङ्गस्य ) अङ्ग के (हः) हकार के स्थान में (अचङि) चङ् से भिन्न प्रत्यय परे होने पर (कु:) कवगदिश होता है। उदा०-स प्रजिघीषति । वह प्रेरणा करना चाहता है । स प्रजेघीयते । वह पुन: पुन: प्रेरणा करता है । स प्रजिघाय । उसने प्रेरणा की । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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