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पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम्
ककार से पूर्ववर्ती अकार के स्थान में (आणि) आप् प्रत्यय परे होने पर ( इत्) इकारादेश (न) नहीं होता है (असुपः ) यदि वह आप प्रत्यय सुप् से परे न हो (उदीचाम्) उत्तर भारत के आचार्यों के मत में । पाणिनि मुनि के मत में तो इकारादेश होता ही है ।
उदा०- खट्वका, खट्विका। छोटी खाट । (नञ्पूर्व) अखट्वका, अखट्विका । छोटी खाट नहीं । परमखट्वका, परमखट्विका । कुत्सित बड़ी खाट ।
सिद्धि- खट्वका। यहां अभाषितपुंस्क 'खट्वा' शब्द से 'हस्वें' (५/३/८६) से ह्रस्व- अर्थ में 'क' प्रत्यय है। 'केऽण:' (७।४।१३) से आकार के स्थान में अकार आदेश होता है। इस सूत्र से इस अकार के स्थान में उदीच्य आचार्यों के मत में इकारादेश नहीं होता है। पाणिनिमुनि के मत में तो होता ही है-खट्विका । ऐसे ही नञ्पूर्वक से- अखट्वका, अखट्विका । परमखट्वका, परमखट्विका। यहां 'कुत्सितें' (५1३/७४) से कुत्सित = निन्दित अर्थ में 'क' प्रत्यय है।
आद्-आदेश:
(६) आदाचार्याणाम् । ४६ । ।
प०वि० - आत् १ । १ आचार्याणाम् ६ । ३ आदरार्थं बहुवचनम् । अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्थात्, कात्, पूर्वस्य, अतः, इद्, आपि, असुपः, आत:, स्थाने, नञ्पूर्वाणाम् अपि अभाषितपुंस्कादिति चानुवर्तते । अन्वयः-नञ्पूर्वादपि अभाषितपुंस्कादऽङ्गादाऽऽतः स्थानेऽतः, प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्य स्थाने आपि आद्, असुपः, आचार्याणाम् ।
अर्थ:-नञ्पूर्वाद् अनञ्पूर्वादपि भाषितपुंस्कादऽङ्गाद् विहितस्याऽऽतः स्थाने योऽकारस्तस्य प्रत्ययस्थात् ककारात् पूर्वस्य स्थाने, आपि प्रत्यये परत आकारादेशो भवति, आचार्याणां मतेन ।
उदा०-खट्वाका। (नञ्पूर्व:) अखट्वाका । परमखटवाका ।
आर्यभाषाः अर्थ- (नञ्पूर्वादपि ) नञ्पूर्वक और अनञ्पूर्वक भी (अभाषितपुंस्कात्) जिसने पुलिङ्ग को नहीं कहा है उस (अङ्गात्) अङ्ग से विहित (आत:) आकार के स्थान में जो (अतः) अकारादेश है उस ( प्रत्ययस्थात्) प्रत्यय में अवस्थित ( कात्) ककार से (पूर्व) पूर्ववर्ती अकार के स्थान में (आत्) आकारादेश होता है (आचार्याणाम् ) पाणिनि मुनि के गुरुवर आचार्य के मत में ।
उदा० - खट्वाका | छोटी खाट । ( नञपूर्व) अखट्वाका | छोटी खाट नहीं। परमखट्वाका । कुत्सित बड़ी खाट ।
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