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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः
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अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्थात्, कात् पूर्वस्य, अतः, इद्, आपि, असुप, नेति चानुवर्तते ।
अन्वयः - अङ्गस्य यकपूर्वाया आत: स्थानेऽतः प्रत्ययस्थात् कात्पूर्वस्यापि इद् न, असुप:, उदीचाम् ।
अर्थ:-अङ्गस्य यकारपूर्वस्या: ककारपूर्वायाश्चाऽऽतः स्थाने योऽकारस्तस्य प्रत्ययस्थात् ककारात् पूर्वस्य स्थाने, आपि प्रत्यये परत इकारादेशो न भवति, स चेद् आप् सुपः परो न भवति, उदीचामार्चायाणां मतेन । पाणिनिमते तु भवत्येव ।
उदा० - यकारपूर्वाया:-इभ्यका, इभ्यिका । क्षत्रियका, क्षत्रियिका । ककारपूर्वाया:- चटकका, चटकिका । मूषिकका, मूषिकका ।
आर्यभाषाः अर्थ-(अङ्गस्य ) अङ्ग के ( यकपूर्वायाः) यकारपूर्ववाले और ककारपूर्ववाले (आत:) आकार के स्थान में (अतः ) जो अकार आदेश होता है, (प्रत्ययस्थात्) प्रत्यय में अवस्थित (कात्) ककार से (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती उस अकार के स्थान में (आपि ) आप् प्रत्यय परे होने पर (इत्) इकारादेश (न) नहीं होता है (असुपः ) यदि वह आप प्रत्यय सुप् से परे न हो (उदीचाम् ) उत्तर भारत के अचार्यों के मत में । पाणिनि मुनि के मत में तो इकारादेश होता ही है।
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उदा० - यकारपूर्वा-इभ्यका, इभ्यिका । छोटी हथिनी । क्षत्रियका, क्षत्रियिका । छोटी क्षत्रिया नारी । ककारपूर्वा-चटकका, चटकिका | छोटी चिड़िया। मूषिकका, मूषिकिका । छोटी मूसी ( चूही ) ।
सिद्धि इभ्यका । यहां 'इभ्या' शब्द से 'हस्वे' (५1३1८६ ) से ह्रस्व- अर्थ में 'क' 'प्रत्यय है। केऽण:' (७ / ४ ११३) से 'क' प्रत्यय परे होने पर अण् (आकार) को ह्रस्व होता है। इस सूत्र से इस यकारपूर्वा आकार के स्थान में विहित, प्रत्ययस्थ ककार से पूर्ववर्ती अकार के स्थान में उदीच्य आचार्यों के मत में इकार आदि का प्रतिषेध हेता है। पाणिनि मुनि के मत में तो इकारादेश होता है-इभ्यिका । ऐसे ही क्षत्रियका, क्षत्रियिका आदि । विशेषः सूत्रपाठ में धकारपूर्वाया: ' पद में स्त्रीलिङ्ग निर्देश आप् (स्त्रीलिङ्ग) प्रत्यय की दृष्टि से किया गया है।
इदादेश-प्रतिषेधः
(७) भस्त्रैषाजाज्ञाद्वास्वा नञ्पूर्वाणामपि । ४७ । प०वि० - भस्त्रा- एषा - जा-ज्ञा- द्वा स्वा ६ । ३ ( लुप्तषष्ठीकं पदम् ) नब्पूर्वाणाम् ६।३ अपि अव्ययपदम् ।
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