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________________ सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः २५७ अर्थ:-अङ्गस्य प्रत्ययस्थात् ककारात् पूर्वस्याऽकारस्य स्थाने, आपि प्रत्यये परत इकारादेशो भवति, स चेदाऽऽप् सुप: परो न भवति। उदा०-जटिलिका । मुण्डिका। कारिका। हारिका । एतिकाश्चरन्ति। आर्यभाषा: अर्थ-(अङ्गस्य) अङ्ग के (प्रत्ययस्थात्) प्रत्यय में अवस्थित (कात्) ककार वर्ण से (पूर्वस्य) पूर्ववर्ती (अत:) अकार के स्थान में (आपि) आप-टाप. डाप, चाप् प्रत्यय परे होने पर (इत्) इकारादेश होता है (असुपः) यदि वह आप् प्रत्यय सुप् से परे न हो। उदा०-जटिलिका । जटाधारिणी अज्ञात नारी। मुण्डिका । शिरोमण्डिता अज्ञात नारी। कारिका । करनेवाली। हारिका। हरण करनेवाली। एतिकाश्चरन्ति । ये अज्ञात कन्यायें घूम रही हैं। सिद्धि-(१) जटिलिका । जटिला+क । जटिल+क। जटिलक+टाप् । जटिलक+आ। जटिलिका+सु । जटिलिका+० । जटिलिका। यहां प्रथम जटिला' शब्द से 'अज्ञाते (५।३।७३) से स्व-स्वामी सम्बन्ध रूप से अज्ञात-अर्थ में 'क' प्रत्यय है। तत्पश्चात् स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजायतष्टा (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस आप्-प्रत्यय के परे होने पर अड्ग के प्रत्ययस्थ ककार से पूर्ववर्ती अकार को इकारादेश होता है। केण:' (७।४।१३) से आकार को हस्व होता है। ऐसे ही 'मुण्ड' शब्द से-मुण्डिका। (२) कारिका । यहां इकत्र करणे (तना०3०) धातु से 'वुल्तचौ (३।१।१३३) से 'एवुल्' प्रत्यय है। युवोरनाको' (७।११) से '' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। तत्पश्चात् कारक' शब्द से शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही हा हरणे (भ्वा०3०) धातु से-हारिका। (३) एतिका । एत् अकच् अद्। एतक अ अ। एतक+टाप् । एतक+आ। एतिका+सु । एतिका+० । एतिका। यहां एतद्' शब्द से 'अज्ञाते (५/३१७३) से स्व-स्वामी रूप सम्बन्ध से अज्ञात अर्थ में 'अव्ययसर्वनाम्नामकच प्राक टे:'५ १३ १७२) के नियम से टि-भाग (अद्) से पूर्व 'अकच्' प्रत्यय है। 'त्यदादीनाम:' (७।२।१०) ये अन्त्य दकार को अकारादेश और 'अतो गुणे (६।१।९६) से पररूप एकादेश है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।१) से टाप्' प्रत्यय होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। इदादेश-प्रतिषेधः (५) न यासयोः ।४५। प०वि०-न अव्ययपदम्, या-सयो: ६।२ । स०-या च सा च ते यासे, तयो:-यासयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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