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________________ २५२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (५) क्नोपयति। नयी शब्द उन्दे च' (भ्वा०आ०)। लोपो व्योर्वलि (६।१।६६) से यकार का लोप होता है। (६) क्षमापयति । 'क्ष्मायी विधूनने' (भ्वा०आ०)। (७) दापयति। डुदान दाने (जु० उ०)। (८) धापयति। डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०उ०)। युक्-आगमः (५) शाच्छासाह्वाव्यावेपां युक्।३७। प०वि०-शा-च्छा-सा-हा-व्या-वे-पाम् ६।३ युक् १।१। स०-शाश्च छाश्च साश्च हाश्च व्याश्च वेश्च पाश्च ते-शा०पाः, तेषाम्-शा०पाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।। अनु०-अङ्गस्य, णाविति चानुवर्तते। अन्वय:-शाच्छासाह्याव्यावेपामऽङ्गानां णौ युक्। अर्थ:-शाच्छासाहाव्यावेपामऽङ्गानां णौ प्रत्यये परतो युगागमो भवति । उदा०- (शा) निशाययति। (छा) अवच्छाययति। (सा) अवसाययति । (हा) हाययति। (व्या) संव्याययति । (व) वेञ्-वाययति । (पा) पाययति। आर्यभाषा: अर्थ-(शा०) शा, छा, सा, हा, व्या, वे. पा इन (अङ्गानाम्) अगों को (णौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (युक्) चुक् आगम होता है। उदा०-(शा) निशाययति । वह तीक्ष्ण कराता है। (छा) अवच्छाययति । वह कतरवाता है। (सा) अवसाययति। वह विध्वस कराता है। (हा) हापयति। वह बुलाता है। (व्या) संव्याययति । वह आच्छादित कराता है। (व) वेञ्-वाययति । वह बुनवाता है (वस्त्र)। (पा) पाययति। वह पिलाता है। सिद्धि-(१) निशाययति । यहां नि-उपसर्गपूर्वक 'शो तनूकरणे' (दि०प०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से 'णिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे युक् आगम होता है। 'आदेच उपदेशेऽशिति (६।१।४५) से ओकार को आत्व होता है। पूर्वसूत्र (७।३।३६) से 'पुक्' आगम प्राप्त था, अत: इस सूत्र से युक्’ आगम का विधान किया गया है। (२) अवच्छाययति । अव-उपसर्गपूर्वक छो छेदने (दि०प०) धातु से पूर्ववत् । (३) अवसाययति । अव-उपसर्गपूर्वक षोऽन्तकर्मणि' (दि०प०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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