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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-स घातयति। वह हिंसा/गति कराता है। घातकः । हिंसक/गतिकारक। साधुघाती। ठीक हिंसा/गति करनेवाला। घातंघातम् । पुन:-पुन: हिंसा/गति करके। घातो वर्तते। हिंसा/गति है।
सिद्धि-(१) घातयति । हन्+णिच् । हन्+इ। हत्+इ। घत्+इ। घा+इ। घाति+लट् । घातयति।
यहां प्रथम हन हिसागत्योः ' (अदा०प०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से हेतुमान् अर्थ में णिच्’ प्रत्यय है। इस सूत्र से णित् णिच् प्रत्यय परे होने पर हन्' के अन्त्य नकार को तकारादेश होता है। हो हन्तेणिन्नेषु' (७।३।५४) से हकार को कुत्व घकार और 'अत उपधायाः' (७।२।११६) से उपधावृद्धि होती है। तत्पश्चात् णिजन्त 'घाति' धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है।
(२) घातकः । यहां पूर्वोक्त हन्' धातु से ‘ण्वुल्तृचौं' (१।३।१३३) से 'वुल्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(३) साधुघाती। यहां साधु-उपपद पूर्वोक्त 'हन्' धातु से 'सुप्यजातो णिनिस्ताच्छील्ये (३।२।७८) से णिनि' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(४) घातंघातम् । यहां पूर्वोक्त हन्' धातु से 'आभीक्ष्ण्ये णमुल च' (३।४।२२) से णमुल्' प्रत्यय है। वाo-'आभीक्ष्ण्ये द्वे भवत:' (३।४।२२) से द्वित्व होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(५) घात: । यहां पूर्वोक्त हन्' धातु से 'भावे (३।३।१८) से भाव-अर्थ में 'घञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
आगमप्रकरणम् युक्-आगम:
(१) आतो युक् चिण्कृतोः ।३३। प०वि०-आत: ६ ।१ युक् १।१ चिण्-कृतो: ७ ।२।
स०-चिण् च कृच्च तौ चिण्कृतौ, तयो:-चिण्कृतो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्य, णितीति चानुवर्तते। अन्वय:-आतोऽङ्गस्य चिणि णिति कृति च युक्।
अर्थ:-आकारान्तस्याऽङ्गस्य चिणि, निति णिति कृति च प्रत्यये परतो युगागमो भवति।
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