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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् . उदा०-ते संविद्रते, संविदते । ते संविद्रताम्, संविदताम्। ते समविद्रत, समविदत। आर्यभाषा: अर्थ-(वत्ते:) वेत्ति=विद् इस (अङ्गात्) अङ्ग से परे (झ:) झ (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के (अत:) अत्-आदेश को (विभाषा) विकल्प से (रुट) रुट् आगम होता है। उदा०-ते संविद्रते, संविदते । वे सब सम्यक् जानते हैं। ते संविद्रताम्, संविदताम् । वे सब सम्यक् जानें। ते समविद्रत, समविदत । उन सबने सम्यक् जाना। सिद्धि-(१) संविद्रते। सम्+विद्+लट् । सम्+विद्+ल् । सम्+विद्+झ। सम्+विद्+शप्+झ। सम्+विद्+o+अत । सम्+विद्+रुट्+अते। सम्+विद्+र+अते । संविद्रते। यहां सम्-उपसर्गपूर्वक 'विद् ज्ञाने' (अदा०प०) धातु से 'लट्' प्रत्यय है। वा०-'समो गमादिषु विदिप्रच्छिस्वरतीनामुपसंख्यानम् (१।३।२९) से आत्मनेपद होता है। 'आत्मनेपदेष्वनतः' (७।१।५) से झ्' के स्थान में अत्-आदेश होता है। इस सूत्र से इस 'अत्' आदेश को 'रुट' आगम होता है। विकल्प पक्ष में 'रुट' आगम नहीं है-संविदते। लोट्लकार में-संविद्रताम्, संविदताम्। 'आमेत:' (३।४।९१) से एकार को 'आम्' आदेश होता है। लङ्लकार में-समविद्रत, समविदत। बहुलं रुडागम: (८) बहुलं छन्दसि।८। प०वि०-बहुलम् ११ छन्दसि ७।१। अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, झ:, अत्, रुडिति चानुवर्तते। अन्वय:-छन्दसि अङ्गात् झ: प्रत्ययस्य अतो बहुलं रुट । अर्थ:-छन्दसि विषयेऽङ्गादुत्तरस्य झ: प्रत्ययस्य अत आदेशस्य बहुलं रुडागमो भवति। ___ उदा०-देवा अदुह्र (मै०सं० ४।२।१३)। गन्धर्वाप्सरसो अदुह्र (मै०सं० ४।२।१३)। न च भवति-अदुहत । बहुलवचनादत्रापि भवतिअदृश्रमस्य केतवः (ऋ० १।५० १३)। आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (अङ्गात्) अङ्ग से उत्तर (झ:) झ (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के (अत:) अत्-आदेश को (बहुलम्) प्रायश: (रुट) रुट आगम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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