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________________ २०८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वयः-पुंसि इदमोऽङ्गस्य इद: सौ विभक्तौ अय् । अर्थ:-पुंसि वर्तमानस्य इदमोऽङ्गस्य इद्भागस्य सौ विभक्तौ परतोऽयादेशो भवति। उदा०-अयं माणवकः। आर्यभाषा: अर्थ- (पुंसि) पुंलिङ्ग में विद्यमान (इदम:) इदम् इस (अङ्गस्य) अङ्ग के (इद:) इद्-भाग के स्थान में (सौ) सु इस (विभक्तौ) विभक्ति के परे होने पर (अय्) अय् आदेश होता है। उदा०-अयं माणवकः । यह बालक । सिद्धि-अयम् । यहां 'इदम्' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस सु' विभक्ति के परे होने पर इदम्' के इद्-भाग के स्थान में 'अय्' आदेश होता है। इदमो म:' (७।२।१०८) से इदम्' के मकार को मकार आदेश होता है। अन-आदेशः (३४) अनाप्यकः ।११२। प०वि०-अन ११ (सु-लुक्) आपि ७।१ अक: ६।१। स०-न विद्यते को यस्मिंस्तत्-अक्, तस्य-अक: (बहुव्रीहि:)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, इदम:, इद इति चानुवर्तते। अन्वय:-अक इदमोऽङ्गस्य इद आपि विभक्तौ अनः । अर्थ:-अक:=ककारवर्जितस्य इदमोऽङ्गस्य इद्भागस्य स्थाने आपि विभक्तौ परतोऽनादेशो भवति । उदा०-अनेन माणवकेन। अनयोर्माणवकयोः । आपि-इत्यत्र तृतीयैकवचनात् प्रभृति सुप: पकारेण 'आप्' इति प्रत्याहारो गृह्यते। आर्यभाषा: अर्थ- (अक:) ककार-अकच् से रहित (इदम:) इदम् इस (अङ्गस्य) अङ्ग के (इद:) इद्भाग के स्थान में (आपि) आप यह (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (अन:) अन-आदेश होता है। उदा०-अनेन माणवकेन। इस बालक के द्वारा। अनयोर्माणवकयोः । इन बालकों का/में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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