SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६३ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः अन्वय:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य सौ विभक्तौ त्वाहौ। अर्थ:-युष्मदस्मदोरड्गयोर्मपर्यन्तस्य स्थाने सौ विभक्तौ परतो यथासंख्यं त्वाहावादेशौ भवतः। उदा०-(युष्मद्) त्वम्। (अस्मद्) अहम् । आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयोः) अङ्गों के (मपर्यन्तस्य) मकारपर्यन्त के स्थान में (सौ) सु (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर यथासंख्य (त्वाही) त्व, अह आदेश होते हैं। उदा०- (युष्मद्) त्वम् । तू। (अस्मद्) अहम् । मैं। सिद्धि-त्वम् । यहां 'अस्मद्’ शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। 'डेप्रथमयोरम्' (७।१।२८) से 'सु' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से यह अम् (सु) विभक्ति परे होने पर युष्मद्’ के म-पर्यन्त के स्थान में त्व' आदेश होता है। 'शेषे लोप:' (७ ।२।९०) से दकार का लोप और अमि पूर्वः' (६।१।१०५) से पूर्वसवर्ण एकादेश होता है। ऐसे ही अस्मद्' शब्द से-अहम् । तुभ्य-मह्यौ (१७) तुभ्यमह्यौ ङयि।६५। प०वि०-तुभ्य-मह्यौ १२ ङयि ७।१। स०-तुभ्यश्च मह्यश्च तौ-तुभ्यमह्यौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, युष्मदस्मदो:, मपर्यन्तस्य इति चानुवर्तते। अन्वय:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य ङयि विभक्तौ तुभ्यमह्यौ। अर्थ:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य स्थाने डयि विभक्तौ परतो यथासंख्यं तुभ्यमह्यावादेशौ भवत: । उदा०- (युष्मद्) तुभ्यम्। (अस्मद्) मह्यम् । आर्यभाषाअर्थ- (युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयो:) अङ्गों में (मपर्यन्त) मकार-पर्यन्त के स्थान में (डयि) डे (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर यथासंख्य (तुभ्यमह्यौ) तुभ्य, मह्य आदेश होते हैं। उदा०-(युष्मद्) तुभ्यम् । तेरे लिये। (अस्मद्) मह्यम् । मेरे लिये। सिद्धि-तुभ्यम् । यहां युष्मद्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'डे' प्रत्यय है। 'डेप्रथमयोरम्' (७।१।२८) से डे' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy