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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ___ अर्थ:-भाषायां विषये युष्मदस्मदोरङ्गयो: स्थाने प्रथमायाश्च द्विवचने परत आकारादेशो भवति।
उदा०-(युष्मद्) युवाम्। (अस्मद्) आवाम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(भाषायाम्) लौकिक भाषा में (युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयोः) अगों के स्थान में (प्रथमाया:) प्रथमा विभक्ति को (च) भी (द्विवचने) द्विवचन परे होने पर (आ:) आकार आदेश होता है।
उदा०- (युष्मद्) युवाम् । तुम दोनों। (अस्मद्) आवाम् । हम दोनों।
सिद्धि-युवाम् । युष्मद्+औ। युष्मद्+अम्। युव अद्+अम् । युव अ+आ+अम्। युव आ+अम् । युवा+अम् । युवाम्।
यहां 'युष्मद्' शब्द से स्वौजस्०' (४।१।२) से प्रथमा विभक्ति का द्विवचन औ' प्रत्यय है। डे प्रथमयोरम् (७।१२८) से औ' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से इस अम् (औ) प्रत्यय के परे होने पर युष्मद् के अन्त्य अल् (द) के स्थान में आकार आदेश होता है। युवावौ द्विवचने (७।२।९२) से युष्मद् के मपर्यन्त के स्थान में 'युव' आदेश, 'अतो गुणे (६।१९७) से पररूप एकादेश और 'अक: सवर्णे दीर्घः' (६।१ ।१०१) से दीर्घरूप एकादेश होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-आवाम् । यकार-आदेश:
(११) योऽचि।८६। प०वि०-य: ११ अचि ७।१। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, युष्मदस्मदो:, अनादेशे इति चानुवर्तते। अन्वय:-युष्मदस्मदयोरङ्गयोरनादेशेऽचि विभक्तौ यः।
अर्थ:-युष्मदस्मदयोरङ्गयो: स्थानेऽनादेशेऽजादौ विभक्तौ परतो यकारादेशो भवति।
उदा०-(युष्मद्) त्वया। त्वयि । युवयोः । (अस्मद्) मया। मयि । आवयोः।
आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयोः) अगों के स्थान में (अनादेशे) आदेश से रहित (अचि) अजादि (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (य:) यकार आदेश होता है।
उदा०- (युष्मद्) त्वया । तुझ द्वारा। त्वयि । तुझ में। युवयोः । तुम दोनों में। (अस्मद्) मया। मुझ द्वारा। मयि । मुझ में। आवयोः । हम दोनों का/हम दोनों में।
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