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________________ १८० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इडागमः (४४) ईडजनोधै च७८। प०वि०-ईड-जनो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे) ध्वे ६।१ (लुप्तषष्ठीकं पदम्) च अव्ययपदम्। स०-ईडश्च जन् च तौ-ईडजनौ, तयो:-ईडजनो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, इट्, सार्वधातुके, से इति चानुवर्तते। अन्वय:-ईडजनिभ्याम् अङ्गाभ्यां सार्वधातुकस्य ध्वे: सेश्च इट् । अर्थ:-ईडजनिभ्यामङ्गाभ्याम् उत्तरस्य सार्वधातुकस्य ध्वे: सेश्च प्रत्ययस्य इडागमो भवति। उदा०-(ईड्) वे-ईडिवे, ईडिध्वम् । से-ईडिषे, ईडिष्व। (जन) ध्वे-जनिध्वे, जनिध्वम्। से-जनिषे, जनिष्व। आर्यभाषा: अर्थ-(ईडजनिभ्याम्) ईड और जनि इन (अगाभ्याम्) अङ्गों से परे (ध्वे) ध्वे प्रत्यय (च) और (से) से प्रत्यय को (इट्) इडागम होता है। उदा०-(ईड) ध्वे-ईडिध्वे । तुम सब स्तुति करते हो। ईडिध्वम् । तुम सब स्तुति करो। से-ईडिषे । तू स्तुति करता है। ईडिष्व । तू स्तुति कर। (जन) ध्वे-जनिध्वे । तुम सब प्रकट होते हो। जनिध्वम् । तुम सब प्रकट होओ। से-जनिषे। तू प्रकट होता है। जनिष्व । तू प्रकट हो। सिद्धि-ईडिध्वे । यहां ईड स्तुतौ (अदा०आ०) धातु से पूर्ववत् लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में 'ध्वम्' आदेश और इसे 'टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से एकार आदेश होता है। इस सूत्र से इस 'ध्वे' प्रत्यय को इडागम होता है। ऐसे ही लोट् लकार में-ईडिध्वम् । से-प्रत्यय में लट् लकार में-ईडिषे और लोट् लकार में-ईडिष्य। ऐसे ही जनी प्राभावे (दि०आ०) धातु से-जनिध्वे, जनिध्वम् । जनिषे, जनिष्व। ।। इति इडागमप्रकरणम् ।। आदेशप्रकरणम् सकारलोपः (१) लिङ: सलोपोऽनन्त्यस्य ।७६ | प०वि०-लिङ: ६।१ सलोप: ११ अनन्त्यस्य ६।१। स०-सस्य लोप इति सलोप: (षष्ठीतत्पुरुषः)। अन्ते भवोऽन्त्यः, न अन्त्य इति अनन्त्यः, तस्य अनन्त्यस्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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