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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (८) उच्छिश्रयिषति । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक श्रिज्ञ सेवायाम् (भ्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम होता है। शश्छोऽटि' (८।४।६३) से शकार को छकार और 'स्तो: सूचुना श्चुः' (८।४।४०) से तकार को चवर्ग चकार होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। विकल्प-पक्ष में इडागम नहीं है-उच्छिश्रीषति । 'अज्झनगमां सनि' (६।४।१६) से दीर्घ होता है।
(९) सिस्वरिषति । यहां स्व शब्दोपतापयो:' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। उरत्' (७।३।६६) से अभ्यासस्थ ऋकार को अकार आदेश, उरण रपरः' (१।११५१) से इसे रपरत्व और 'सन्यत:' (७।४।७९) से इकार आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम नहीं है-सुस्वर्षति । 'अज्झनगमां सनि' (६।४।१६) से दीर्घ (स्व) उदोष्ठ्यपूर्वस्य' (७।१।१०२) से ऋ' के स्थान में उकारादेश और उरण रपरः' (१११५१) से रपरत्व और हलि च (८/२/७७) से दीर्घ होता है। तत्पश्चात् 'स्वर्ष' इसको द्वित्व और अभ्यास-कार्य होता है।
(१०) यियविषति । यहां 'यु मिश्रणे च' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। 'ओ: पुयणज्यपरे' (७।४।८०) से अभ्यास को इकार आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
(११) प्रौर्जुनविषति । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक ऊर्गु' आच्छादने (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। अजादेर्द्वितीयस्य' (६।१।२) से द्वितीय एकाच अवयव (नुस) को द्वित्व होता है। इस सूत्र से 'सन्' को इडागम होता है। विभाषोर्णो:' (१।२।३) से 'सन्' के डिद्वत् होने से 'अचि अनुधातुभ्रुवां०' (६।४।७७) से उवङ्-आदेश होता है-प्रोणुनुविषति। विकल्प-पक्ष में इडागम नहीं है-प्रोणुनूषति। अज्झनगमां सनि' (६ ।४।१६) से अङ्ग को दीर्घ होता है।
(१२) बिभरिषति। यहां 'डुभृन धारणपोषणयोः' (जु०उ०) धातु से पूर्ववत् 'सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम नहीं है-बभर्षति । उदोष्ठ्यपूर्वस्य' (७।२।१०२) से ऋकार को उत्व, उरण रपरः' (१।११५१) से इसे रपरत्व और हलि च' (८/२ ७७) से दीर्घ होता है।
(१३) जिज्ञपयिषति । यहां मारणतोषणनिशामनेषु ज्ञा' (भ्वा०प०) इस णिजन्त धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम नहीं है-जीप्सति । 'अर्तिही०' (७ ४३ ४३६) से पुक्’ आगम, आपज्ञप्यधामीत्' (७।४ १५५) से ईकार आदेश और 'अत्र लोपोऽभ्यासस्य' (७।४।५८) से अभ्यास का लोप होता है।
(१४) सिसनिषति । यहां 'षणु दाने (त०उ०) धातु से पूर्ववत् ‘सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे इडागम होता है। विकल्प पक्ष में इडागम नहीं है-सिषासति । जनसनखना सञ्झलो:' (६।४।४३) से आकार आदेश होता है।
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