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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १५१ अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुकस्य, इट, वलादे:, वा इति चानुवर्तते । अन्वय:-इवन्तर्धभ्रस्जदम्भुधिस्वयुर्णभरज्ञपिसनिभ्योऽङ्गेभ्यो वलादेरार्धधातुकस्य सनो वा इट् । अर्थ:-इवन्तेभ्य ऋधभ्रस्जदम्भुधिस्वयूर्णभरज्ञपिसनिभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य वलादेरार्धधातुकस्य सनो विकल्पेन इडागमो भवति । उदाहरणम्सं० धातुः शब्दरूपम् भाषार्थ: इवन्त: (१) दिव् दिदेविषति वह क्रीडा आदि करना चाहता है। दुयूषति -सम(२) सिव् सिसेविषति वह सिलाई करना चाहता है। सुस्यूषति -सम (३) ऋध् अदिधिषति वह बढ़ना चाहता है। ईलैति -सम(४) भ्रस्ज बिभ्रज्जिषति वह पकाना चाहता है। बिभ्रक्षति -समबिभजिषति -समबिभक्षति -समदिदम्भिषति वह दम्भ (ढोंग) करना चाहता है। धिप्सति -समधीप्सति -सम(६) श्रि उच्छिश्रयिषति वह सेवा करना चाहता है। उच्छिश्रीषति -सम(७) स्व सिस्वरिषति वह शब्द/उपताप (पीड़ा) करना चाहता है। सुस्वूति __ -सम(८) यु यियविषति वह मिश्रण-अमिश्रण करना चाहता है। युयूषति -सम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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