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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) प्रसोता। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक घङ प्राणिगर्भविमोचने (अदा०आ०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-प्रसविता।
(३) सोता । यहां पूङ् प्राणिप्रसवे' (दि०आ०) धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-सविता ।
(४) धोता । यहां 'धूङ् कम्पने (भ्वा०3०) धातु से पुर्ववत् हुन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-धरिता ।
(५) विगाढा। यहां वि-उपसर्गपूर्वक 'गाहू विलोडने' (भ्वा० आ०) इस ऊदित् धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। हो ढः' (८।२।३१) से हकार को ढकार, झषस्तथोर्थोऽध:' से तकार को धकार और 'टुना टुः' (८।४।४१) से धकार को टवर्ग ढकार होता है। ढो ढे लोप:' (८१३।१३) से पूर्ववर्ती ढकार का लोप होता है। द्रलोये पूर्वस्य दीर्घोऽग:' (६ ॥३।१११) से पर्जन्यवत् सूत्रप्रवृत्ति से दीर्घ होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-विगाहिता ।
(६) गोप्ता । यहां 'गुपू रक्षणे' (भ्वा०प०) इस ऊदित् धातु से पूर्ववत् तृच्' प्रत्यय है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-गोपिता । इडागम-विकल्प:
(११) रधादिभ्यश्च।४५ | प०वि०-रध-आदिभ्य: ५।३ च अव्ययपदम्। स०-रध आदिर्येषां ते रधादयः, तेभ्य:-रधादिभ्यः (बहुव्रीहि:)। अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुकस्य, इट, वलादे:, वा, इति चानुवर्तते । अन्वयः-रधादिभ्योऽङ्गेभ्यश्च वलादेरार्धधातुकस्य वा इट् ।
अर्थ:-रधादिभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य वलादेरार्धधातुकस्य विकल्पेन इडागमो भवति।
उदा०-एते रधादयोऽष्टौ धातवो दिवादिगणे पठ्यन्ते(१) रध हिंसासंराध्यो:-रद्धा, रधिता। । (२) णश अदर्शने-नष्टा, नशिता। (३) तृप प्रीणने-त्रप्ता, तप्र्ता, बर्पिता। (४) दृप हर्षमोहनयो:-द्रप्ता, दर्ता, दर्पिता। (५) द्रुह जिघांसायाम्-द्रोग्धा, द्रोढा, द्रोहिता।
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