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अनिट्
(३) पूर्ण:
(४) दस्त:
(५) स्पष्टः
(६) छन्नः
(७) ज्ञप्तः
सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
भाषार्थ:
इडागमः
पूरित:
दासित:
स्पाशित:
छादित:
ज्ञपित:
आर्यभाषाः अर्थ- ( दान्त०) दान्त, शान्त, पूर्ण, दस्त, स्पष्ट, छन्न, ज्ञप्त इन शब्दों में (णे:) णिजन्त (अङ्गात्) अङ्ग से परे (निष्ठायाः) निष्ठा-संज्ञक प्रत्यय को (वा) विकल्प से (इट्) इडागम (न) नहीं होता है, यह निपातित है ।
उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है।
सिद्धि-(१) दान्त: । दम्+ णिच्+क्त । दाम्+इ+त। दम्+०+त। दम्+त । दाम्+त । दान्+त। दान्त+सु । दान्तः ।
यहां 'दमु उपशमें' (दि०प०) धातु से हेतुमति च' (३ | १ | २६ ) से 'णिघ्' प्रत्यय और पूर्ववत् निष्ठा प्रत्यय है। इस सूत्र से णिच् का लुक् और इडागम का प्रतिषेध निपातित है। 'णिच्' परे होने पर 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६ ) से की गई उपधा वृद्धि को 'मितां हस्व:' (६ । ४ । ९२ ) से ह्रस्व हो जाता है । पुनः 'अनुनासिकस्य क्विझलो: क्ङिति (६।४।१५) से दीर्घ होता है। विकल्प पक्ष में इडागम होता है- दमित: । यहां पूर्ववत् ह्रस्व होता है। ऐसे ही 'शमु उपशमें' (दि०प०) धातु से - शान्तः, शमितः ।
(२) पूर्ण: । पूर् + णिच् + क्त । पूर्+इ+त । पूर्+0+न। पूर्+ण। पूर्ण+सु । पूर्णः । यहां णिजन्त 'पूरी आप्यायने' (दि०आ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। 'रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च द: ' ( ८ । २ । ४२ ) से तकार को नकार और 'रषाभ्यां नो णः समानपदे (८।४ 1१) से णत्व होता है। विकल्प-पक्ष में- पूरितः ।
भरा हुआ । उपक्षीण हुआ ।
बाधित / स्पर्श किया । आच्छादित किया।
मारण आदि किया ।
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(३) दस्त: । यहां णिजन्त 'दसु उपक्षये' ( दि०प०) से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। विकल्प - पक्ष में- दासितः ।
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(४) स्पष्ट: । स्पश् + णिच्+क्त । स्पश्+इ+त । स्पश्+इ+त। स्पश्+०+त । स्पष्+ट। स्पष्ट+सु। स्पष्टः ।
यहां णिजन्त ‘स्पश बाधनस्पर्शयो:' (भ्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है । 'व्रश्चभ्रस्ज०' (८ / २ /३५ ) से शकार को षकार और 'ष्टुना ष्टुः' (८/४/४१) से तकार को टवर्ग टकार होता है। विकल्प-पक्ष में- स्पाशित: ।
(५) छन्नः । यहां णिजन्त 'छद अपवारणे' (चु०उ० ) धातु से पूर्ववत् 'क्त' प्रत्यय है। 'रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च द:' ( ८ 1२1४२ ) से तकार को नकार और
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