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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १०३ उदा०-(हकारान्तः) अग्रहीत्। (मकारान्त:) अस्यमीत् । अवमीत् । (यकारान्तः) अव्ययीत्। (क्षण) अक्षणीत्। (श्वस) अश्वसीत्। (जागृ) अजागरीत् । (णिजन्त:) ऊनि-औनयीत्। एलि-ऐलयीत् । (शिव) अश्वयीत् । (एदित्) कखे-अकखीत्। रगे-अरगीत् । हसे-अहसीत्। आर्यभाषा: अर्थ-(हम्यन्तक्षणश्वसजागृणिश्व्येदिताम्) हकारान्त, मकारान्त, यकारान्त, क्षण, श्वस, जाग, णिणिजन्त, शिव, एदित-जिसका एकार इत है, इन (अङ्गानाम्) अगों के (अच:) अच् के स्थान में (परस्मैपदेषु) परस्मैपद-परक (इटि) इडादि (सिचि) सिच् प्रत्यय परे होने पर (वृद्धि:) वृद्धि (न) नहीं होती है। उदा०-(हकारान्त) अग्रहीत् । उसने ग्रहण किया। (मकारान्त) अस्यमीत् । उसने शब्द (आवाज) किया। अवमीत् । उसने वमन (उल्टी) किया। (यकारान्त) अव्ययीत। उसने व्यय किया। (क्षण) अक्षणीत् । उसने हिंसा की, जान से मारा। (श्वस) अश्वसीत् । उसने श्वास लिया। (जाग) अजागरीत्। वह जागा। (णिजन्त) ऊनि-औनयीत् । उसने परित्याग किया। एलि-ऐलयीत् । उसने प्रेरित किया। (शिव) अश्वयीत्। उसने गति/वृद्धि की। (एदित) कखे-अकखीत्। वह जोर से हंसा। रगे-अरगीत् । उसने शंका की। हसे-अहसीत् । वह हंसा, ठठ्ठा किया। सिद्धि-(१) अग्रहीत् । ग्रह+लुङ्। अट्+ग्रह+ल। अ+ग्रह+च्लि+ल। अ+ग्रह+ सिच्+तिम् । अ+ग्रह+स्+त् । अ+ग्रह+इट्+स्+ईट्+त् । अ+ग्रह+s+o+ई+त्। अग्रहीत्। यहां 'ग्रह उपादाने (क्रया०प०) धातु से लुङ् (३।२।११०) से भूतकाल अर्थ में लुङ्' प्रत्यय है। लि लुडि' (३।१।४३) से चिल' प्रत्यय और ले: सिच् (३।१।४४) से चिल' के स्थान में 'सिच्' आदेश है। आर्धधातुकस्येड्वलादे:' (७।२।३५) से सिच्' को इट् आगम होता है। इस परस्मैपदपरक इडादि सिच्' प्रत्यय परे होने पर हकारान्त 'ग्रह' धातु के अच् (अ) को वृद्धि नहीं होती है। 'अस्तिसिचोऽपृक्ते' (७।३।९६) से ईट् आगम और 'इट ईटि' (८।२।२८) से सिच्' का लोप होता है। 'अतो हलादेर्लघो:' (७।२।७) से विकल्प से वृद्धि प्राप्त थी, यह उसका पुरस्तात् अपवाद है। (२) अस्यमीत् । मकारान्त 'स्यमु शब्दे' (भ्वा०प०) पूर्ववत् । (३) अवमीत् । मकारान्त टुवम् उगिरणे (भ्वा०प०)। (४) अव्ययीत् । यकारान्त 'व्यय गतौ' (भ्वा०प०)। 'व्यय वित्तसमुत्सर्गे (न्यास)। (५) अक्षणीत् । 'क्षणु हिंसायाम् (त०उ०)। (६) अश्वसीत् । श्वस प्राणने (अदा०प०)। (७) अजागरीत् । 'जागृ निद्राक्षये (अदा०प०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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