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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् अनु० - धातो:, आत्, एच:, विभाषा, णौ इति चानुवर्तते । अन्वयः - णौ हेतुभये बिभेतेर्धातोर्विभाषा आत् । अर्थ:- णौ प्रत्यये परतो हेतुभयेऽर्थे वर्तमानस्य बिभतेर्धातोरेच: स्थाने विकल्पेनाकारादेशो भवति । ६० उदा० - मुण्डो भापयते, जटिलो भापयते । मुण्डो भीषयते, जटिलो भीषयते । आर्यभाषाः अर्थ- (णौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (हेतुभये ) हेतु से भय होना अर्थ में विद्यमान (बिभेतेः) बिभेति (धातो: ) धातु के (एच) एच् के स्थान में (विभाषा) विकल्प से (आत्) आकार आदेश होता है। उदा० ० - मुण्डो भापयते, जटिलो भापयते । शिर मुंडवाया हुआ / जटाधारी पुरुष बालक को डराता है । मुण्डो भीषयते, जटिलो भीषयते । शिर मुंडवाया हुआ / जटाधारी पुरुष बालक को डराता है । सिद्धि - (१) भापयते । भी+णिच् । भै+ इ । भा+इ । भा+पुक् + इ । भाषि+लट्/ भापयते । यहां 'त्रिभी भयें' (जु०प०) धातु से पूर्ववत् णिच् प्रत्यय है। 'अचो ञ्णिति' (७ 12 1११५) से 'भी' को 'भै' वृद्धि होती है। इस सूत्र से 'भी' के एच् (ऐ) को आकार आदेश होता है। 'अर्तिही०' (७।३।३६ ) से उसे पुक् आगम होता है, तत्पश्चात् 'भापि' धातु से लट् प्रत्यय है । (२) भीषयते। यहां 'भी' धातु से पूर्ववत् णिच् प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प पक्ष में 'भी' धातु के 'एच' को आकार आदेश नहीं है अत: 'भियो हेतुभये षुक्' (७ / ३ /४०) से 'भी' धातु को षुक् आगम होता है, तत्पश्चात् 'भीषि' धातु से लट् प्रत्यय है । 'भीस्म्योर्हेतुभयें' (१/३/६८) से आत्मनेपद ही होता है। नित्यमाकारादेशः (१३) नित्यं स्मयतेः । ५७ । प०वि० - नित्यम् १ । १ स्मयतेः ६ । १ । अनु०-धातो:, आत्, एच:, णौ, हेतुभये इति चानुवर्तते । अन्वयः - णौ हेतुभये स्मयतेर्धातोरेचो नित्यम् आत् । अर्थ:-णौ प्रत्यये परतो हेतुभयेऽर्थे वर्तमानस्य स्मयतेर्धातोरेच: स्थाने नित्यमाकारादेशो भवति । उदा० - मुण्डो विस्मापयते । जटिलो विस्मापयते ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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