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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः દ૬૬ आर्यभाषा: अर्थ-(भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग के (हल:) हल् से परे (तद्धितस्य) तद्धित-प्रत्यय के (उपधायाः) उपधाभूत (य:) यकार का (इति) ईकार परे होने पर (लोप:) लोप होता है। उदा०-गार्गी । गर्ग की पौत्री । वात्सी। वत्स की पौत्री। सिद्धि-गार्गी । गर्ग+यञ् । गर्ग+य। गार्ग+य। गाये+डीप् । गाये+ई। गाये+ई। गार्ग+ई। गार्गी+सु। गार्गी। यहां प्रथम 'गर्ग' शब्द से 'गर्गादिभ्यो यज्ञ (४।१।१०५) से गोत्रापत्य अर्थ में यज्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् गार्ग्य' शब्द से 'यत्रश्च' (४।१।१६) से स्त्रीलिङ्ग में डीप' प्रत्यय है। इस सूत्र से हल् (र) से उत्तरवर्ती तद्धित-प्रत्यय के उपधाभूत यकार का ईकार परे होने पर लोप होता है। 'यस्येति च' (६।४।१४८) से जो अकार का लोप होता है इसे 'असिद्धवदत्राभात्' (६।४।२२) से असिद्ध मानकर तद्धित-यकार उपधाभूत होता है। ऐसे ही वत्स' शब्द से-वात्सी। उपधा-लोपः (२३) आपत्यस्य च तद्धितेऽनाति।१५१। प०वि०-आपत्यस्य ६१ च अव्ययपदम्, तद्धिते ७ १ अनाति ७।१। तद्धितवृत्ति:-अपत्यस्य इदमिति आपत्यम्, तस्य-आपत्यस्य । 'तस्येदम्' (४।३।१२०) इति इदमर्थेऽण् प्रत्ययः । स०-न आत् इति अनात्, तस्मिन्-अनाति (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-अङ्गस्य, भस्य, लोपः, य:, उपधाया:, हल इति चानुवर्तते। अन्वय:-भस्य अङ्गस्य हल आपत्यस्य उपधाया योऽनाति तद्धिते लोपः। अर्थ:-भसंज्ञकस्य अगस्य हल उत्तरस्य आपत्यस्य अपत्यसम्बन्धिन उपधाभूतस्य यकारस्य आकारादिवर्जित तद्धिते प्रत्यये परतो लोपो भवति । उदा०-गर्गाणां समूहः-गार्गकम् । वात्सकम्। आर्यभाषा: अर्थ-(भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग के (हल:) हल से उत्तरवर्ती (आपत्यस्य) आपत्य-अर्थसम्बन्धी (उपधायाः) उपधाभूत (य:) यकार का (अनाति) आकार आदि से भिन्न (तद्धिते) तद्धित प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है। उदा०-गार्गकम् । गार्यों का समूह । वात्सकम् । वात्स्यों का समूह ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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