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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६७५ टुभ्ला” दीप्तौ (भ्वा०आ०)। स्यमु, स्वन शब्दे (भ्वा०प०) इति भ्वादिगणान्तर्गता: सप्त फणादयः ।। आर्यभाषा: अर्थ-(फणाम्) फण-आदि (सप्तानाम्) सात (अङ्गस्य) अगों के (अत:) अकार को (क्ङिति) कित् और ङित् (लिटि) लिट् तथा (सेटि) सेट् (थलि) थल् प्रत्यय परे होने पर (च) भी (वा) विकल्प से (एत्) एकारादेश होता है (च) और (अभ्यासलोप:) अभ्यास का लोप होता है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में देख लेवें। सिद्धि-(१) फेणतुः । फण्+लिट् । फण्+ल। फण्+तस् । फण्+अतुस् । फण्-फण्+अतुस् । ०+फेण+अतुस् । फेणतुस् । फेणतुः । - यहां 'फण गतौ' (भ्वा०प०) धातु से 'लिट्' प्रत्यय है। लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१।८) से धातु को द्वित्व होता है। इस सूत्र से कित्, लिट् (अतुस्) प्रत्यय परे होने पर 'फण्' के अकार को एकारादेश और अभ्यास का लोप होता है। विकल्प-पक्ष में एकारादेश और अभ्यास का लोप नहीं है-पफणतुः । ऐसे ही-फेणुः, पफणुः (उस्)। फेणिथ, पफणिथ (थल्)। (२) रेजतुः । राजु दीप्तौं' (भ्वा०उ०) पूर्ववत् । (३) भेजे। 'भाजू दीप्तौ (भ्वा०आ०) पूर्ववत् । (४) प्रेशे। 'भारी दीप्तौ' (भ्वा०आ०) पूर्ववत् । (५) भ्लेशे। लाश दीप्तौ (भ्वा०आ०) पूर्ववत् । (६) स्येमतुः । स्यमु शब्दे' (भ्वा०प०) पूर्ववत् । (७) स्वेनतुः । स्वन शब्दें' (भ्वा०प०) पूर्ववत् । विशेष: फणाम्' इस बहुवचन-निर्देश से भ्वादिगण अन्तर्गत फणादि सात धातुओं का ग्रहण किया जाता है। एकारादेशप्रतिषेधः (५१) न शसददवादिगुणानाम् ।१२६ । प०वि०-न अव्ययपदम्, शस-दद-वादि-गुणानाम् ६।३। स०-व आदिर्येषां ते वादयः । शसश्च ददश्च वादयश्च गुणश्च ते शसददवादिगुणाः, तेषाम्-शसददवादिगुणानाम् (बहुव्रीहिगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, क्डिति, एत्, अभ्यासलोप:, च, अत:, लिटि, थलि, च, सेटि इति चानुवर्तते।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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