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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(स्फुरति:) विस्फारः, विष्कारः। स्फुरण होना (सूझना)। (स्फुलति:) विस्फाल: विष्फाल: । प्रकट होना। सिद्धि-विस्फारः । वि+स्फुर्+घञ् । वि+स्फोर्+अ। वि+स्फार+अ। विस्फार+सु। विस्फारः। यहां वि उपसर्गपूर्वक स्फुर स्फुरणे' (तु०प०) धातु से 'भावे' (३।३.१८) से भाव अर्थ में घञ्' प्रत्यय है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३ १८६) से स्फुर् को गुण होकर इस सूत्र से 'स्फोर' के एच् के स्थान में आकार आदेश होता है। (२) विष्फारः । यहां 'स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः' (८।३।७६) से षत्व होता है। ऐसे ही स्फल संचलने (तु०प०) धातु से-विस्फाल:, विष्फाल: । णिचि (४) क्रीजीनां णौ।४८। प०वि०-क्री-इङ्-जीनाम् ६।३ णौ ७।१ । स०-क्रीश्च इङ् च जिश्च ते क्रीजयः, तेषाम्-क्रीङ्जीनाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-धातो:, आत्, एच इति चानुवर्तते। अन्वय:-णौ क्रीङ्जीनां धातूनामेच आत्। अर्थ:-णौ प्रत्यये परत: क्रीजीनां धातूनामेच: स्थाने आकारादेशो भवति। उदा०- (क्री:) क्रापयति। (इङ्) अध्यापयति। (जि:) जापयति । आर्यभाषा: अर्थ-(णौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (क्रीजीनाम्) क्री, इङ्, जि (धातो:) धातुओं के (एच:) एच् के स्थान में (आत्) आकार आदेश होता है। उदा०- (क्री) क्रापयति । वह खरीदवाता है। (इङ्) अध्यापयति । वह-पढ़ाता है। (जि) जापयति । वह जितवाता है। सिद्धि-(१) क्रापयति । क्री+णिच् । ऊ+इ। क्रा+इ। क्रा+पुक्+इ। क्रा++इ। क्रापि+लट् । क्रापि+तिप् । क्रापि+शप्+ति। क्रापे+अ+ति। क्रापय्+अ+ति । क्रापयति । यहां 'डुक्रीन द्रव्यविनिमये' (कया उ०) धातु से हेतुमति(३।१।२६) से णिच् प्रत्यय और 'अचो णिति' (७।२।११५) से अंग को वृद्धि होती है। इस सूत्र से कै' के एच् को आकार आदेश होता है। 'अर्तिही०' (७ १३ ।३६) से का' को पुक् आगम होकर क्रापि' धातु से लट् प्रत्यय है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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