SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६४६ अन्वय:-छन्दसि घसिभसोरङ्गयोरुपधाया हलि अचि च क्डिति लोपः। अर्थ:-छन्दसि विषये घसिभसोरङ्गयोरुपधाया हलादावजादौ च किति डिति च प्रत्यये परतो लोपो भवति । उदा०-(घसि:) सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे (यजु० १८ ।९)। बब्धां ते हरी धाना: (निरुक्तम्-५ ।१२) । अजादौ-बप्सति । आर्यभाषा: अर्थ-(छन्दसि) वेदविषय में (घसिभसो:) घसि और भस् (अङ्गस्य) अगों की (उपधाया:) उपधा के स्थान में (हलि) हलादि (च) और (अचि) अजादि (क्ङिति) कित् और डित् प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोपादेश होता है। __उदा०-(घसि) सग्धिश्च मे सपीतिश्च मे (यजु० १८।९)। सन्धि: समान भोजन। (भस्) बब्धां ते हरी धाना: (निरुक्तम्-५ /१२)। बब्धाम् । वे दोनों भर्त्सन/दीप्त करें। अजादि-ते बप्सति । वे सब भर्त्सन/दीप्त करते हैं। सिद्धि-(१) सन्धिः । अद्+क्तिन्। अद्+ति। घस्तृ+ति। घस्+ति। घ्स्+ति । घ्+ति । ग्+धि। ग्धि+सु । समाना ग्धरिति-सन्धिः । यहां 'अद भक्षणे' (अदा०प०) धातु से स्त्रियां क्तिन्' (३।३।९४) से कितन्' प्रत्यय और और बहुलं छन्दसि (२।४।३९) से 'अद्' के स्थान में 'घस्तृ' आदेश है। इस सूत्र से हलादि, कित् क्तिन्' प्रत्यय परे होने पर 'घस्' की उपधा (अ) का लोप होता है। तत्पश्चात् कर्मधारय समास में 'समानस्य छन्दस्यमूर्धप्रभृत्युदर्केषु' (६ ।३।८४) से 'समान' के स्थान में 'स' आदेश होता है। (२) बब्धाम् । भस्+लोट् । भस्+ल। भस्+तस् । भस्+ताम्। भस्+शप्+ताम्। भस्+o+ताम् । भस्-भस्-ताम् । भ-भस्+ताम् । भ-भस्+धाम् । भ-पस्-धाम् । भ-प्०+धाम्। भ-ब्+धाम् । ब-ब्+धाम् । बब्धाम् । यहां 'भस भर्त्सनदीप्त्योः ' (जु०प०) धातु से लोट् च' (३३।१६२) से लोट्' प्रत्यय है। तस्थस्थमिपां तान्तन्तामः' (३।४।१०१) से तस्' के स्थान में ताम्' आदेश है। 'जुहोत्यादिभ्य: श्लुः' (२।४।७५) से शप्’ को ‘श्लु' आदेश होता है। श्लौ' (६।१।१०) से 'भस्' धातु को द्विवचन होता है। इस सूत्र से हलादि, डित् ताम्' प्रत्यय परे होने पर भस्' अङ्ग की उपधा (अ) का लोप होता है। 'झलो झलि' (८।२।२६) से सकार का लोप, 'झषस्तथोोऽध:' (८।२।४०) से तकार को धकार, 'झलां जश् झशि' (८।४।५३) से पकार को 'जश्' बकार होता है। 'अभ्यासे चर्च' (८।४।५४) से अभ्यास के भकार को जश् बकार होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy