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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६३१ अनु०-अङ्गस्य, अचि, यण् इति चानुवर्तते । 'अचि अनुधातुभ्रुवां०' (६।४ १७७) इत्यत्र 'धातोः' इति मण्डूकोत्प्लुत्याऽनुवर्तते, तेन च संयोगो विशेष्यते। अन्वय:-धातोरसंयोगपूर्वस्य एरनेकाचोऽङ्गस्य अचि यण् । अर्थ:-धातोरवयवः संयोगो यस्मादिकारात् पूर्वो न भवति, तदन्तस्यानेकाचोऽङ्गस्य अजादौ प्रत्यये परतो यणादेशो भवति। उदा०-तौ निन्यतु:, ते निन्यु: । उन्न्यौ, उन्न्यः । ग्रामण्यौ, ग्रामण्य: । आर्यभाषा: अर्थ-(धातो:) धातु का अवयवभूत, (असंयोगपूर्वस्य, ए:) संयोग जिस इकार-वर्ण से पूर्व नहीं है, उस इकारान्त (अनेकाच:) अनेक अचोंवाले (अङ्गस्य) अङ्ग को (अचि) अजादि प्रत्यय परे होने पर (यण्) यण् आदेश होता है। __ उदा०-तौ निन्यतुः । उन दोनों ने प्राप्त कराया (पहुंचाया)। ते निन्युः । उन सबने प्राप्त कराया। उन्न्यौ। दो ऊंचा उठानेवाले। उन्न्यः। सब ऊंचा उठानेवाले। ग्रामण्यौ। दो ग्रामणी ग्राम के नेता। ग्रामण्य: । सब ग्रामणी। सिद्धि-(१) निन्यतुः । नि+लिट् । नी+ल। नी+तस् । नी+अतुस्। नी-नी+अतुस् । नि+न्य+अतुस् । निन्यतुः । यह ‘णी प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से 'परोक्षे लिट्' (३।२।११५) से भूतकाल में लिट्' प्रत्यय है। ‘परस्मैपदानां णल०' (३।४।८२) से तस्’ के स्थान में 'अतुस्' आदेश होता है। लिटि धातोरनभ्यासस्य (६।१८) से धातु के द्वित्व होता है-नी-नी। इस अवस्था में धातु के ईकार से पूर्व उसका अवयव संयोगपूर्व नहीं है और द्वित्व-अवस्था में यह अनेक अचोंवाली भी है, अत: इस अङ्ग को अजादि 'अतुस्' प्रत्यय परे होने पर यण (य) आदेश होता है। यह पूर्वोक्त इयङ्' आदेश का अपवाद है। ऐसे ही 'उस्' प्रत्यय परे होने पर-निन्युः। (२) उन्न्यौ । उत्+नी+औ। उत्+न् य+औ। उन्न्यौ । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक 'णी प्रापणे' (भ्वा०उ०) धातु से प्रथम सत्सूद्विष०' (३।२।६१) से 'क्विप्' प्रत्यय है। वरपक्तस्य' (३।१।६६) क्विप् का सर्वहारी होता है। 'क्विबन्तो धातुत्वं न जहाति' इस आप्तवचन से क्विप-प्रत्ययान्त शब्द धातुभाव को नहीं छोड़ता है. अत: इस धातु के ईकार से पूर्व इसका अवयव संयोगपूर्व नहीं है। जो यहां संयोग दिखाई देता है वह उत-उपसर्गजन्य है, धातु का नहीं। उत्-उपसर्ग के योग से यह अनेकाच् अङ्ग है। अत: इस सूत्र से अजादि औ' प्रत्यय परे होने पर इसे यण (य) आदेश होता है। ऐसे ही जस्' प्रत्यय परे होने पर-उन्न्यः। ऐसे ही 'ग्रामणी' शब्द सेग्रामण्यो, प्रामण्य: ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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