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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६०६ 'तास्' प्रत्यय के चिण्वत् होने से अङ्ग (चि) को 'अचो णिति' (७ 1२ 1११५) से वृद्धि होती है। विकल्प-पक्ष में चिण्वद्भाव नहीं है - चेता । ऐसे ही- 'डुदाञ् दानें' (जु०3०) धातु से - दायिता, दाता । णिजन्त 'शमि' धातु से शामिता, शमिता, शमयिता । 'हन हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से - घातिता, यहां पूर्ववत् हन्' धातु के हकार को कुत्व घकार होता है-हन्ता । दृशिर् प्रेक्षण' (भ्वा०प०) धातु से- दर्शिता, द्रष्टा । यहां चिण्वद्भाव विधान के निम्नलिखित प्रयोजन है चिण्वद्वृद्धिर्युक् च हन्तेश्च घत्वम्, दीर्घश्चोक्तो यो मितां वा चिणीति । इट् चासिद्धस्तेन मे लुप्यते णिनिः, नित्यश्चायं वल्निमित्तो विघाती ।। अर्थ:- चिण्वद्भाव होने से स्य आदि प्रत्यय परे होने पर चि' आदि अजन्त धातुओं को वृद्धि होती है। 'दा' आदि आकारान्त धातुओं को 'युक्' आगम होता है। 'हन्' धातु को कुत्व घकार होता है। 'शम्' आदि मित्-संज्ञक धातुओं को विकल्प से दीर्घ होता है । चिण्वद्भाव के साथ विहित 'इट्' प्रत्यय 'असिद्धवदत्राभात्' (६/४/२२) असिद्ध हो जाता है। अतः इसके असिद्ध होने से 'शमिष्यते' आदि में मेरा णि-लोप सिद्ध हो जाता है। यह इट्-आगम नित्य है, अत: यहां 'आर्धधातुकस्येवलादेः' (७ 1२ 1३५) से विहित वल्- निमित्तक इट्-आगम विघाती अर्थात् निमित्ताभाव से प्रवृत्त नहीं होता है। युट्-आगम: - (१८) दीङो युडचि क्ङिति । ६३ । प०वि० - दीङ: ५।१ युट् १ ।१ अचि ७ । १ क्ङिति ७।१। स०-कश्च ङश्च तौ क्ङौ, क्ङावितौ यस्य स क्ङित्, तस्मिन् क्ङिति (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहि: ) । अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुके इति चानुवर्तते । अन्वयः-दीङोऽङ्गाद् आर्धधातुकेऽचि क्ङिति युट् । अर्थः-दीङोऽङ्गाद् उत्तरस्माद् आर्धधातुके अजादौ क्ङिति प्रत्यये परतस्तस्य युडागमो भवति । उदा० - स उपदिदीये । तौ उपदिदीयाते । ते उपदिदीयिरे ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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